
देहरादून : “चिकित्सा संस्थानों में होने वाली हिंसा की रोकथाम” विषय पर स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय कांन्फ्रेस का आयोजन किया गया।
कांफ्रेंस में कनाडा,दिल्ली,मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र,पांडिचेरी,पंजाब,राजस्थान,उत्तराखंड,हरियाणा,जम्मू-कश्मीर,केरल के 376 व्यक्तियों ने प्रतिभाग किया।
चिकित्सा संस्थानों में होने वाली हिंसा के कारण और उनके निवारण को लेकर विषय विशेषज्ञों ने जमकर मंथन किया। आइये जानते हैं…….
क्या कहा एक्सपर्ट्स ने :-
(1)WAITING TIME AND HIGH EXPECTATION-आज हर व्यक्ति डॉक्टर से तुरंत इलाज चाहता है। यदि मरीज पोलिटिकल पहुंच और वीआईपी हो तो डॉक्टर से एक्सपेक्टेशन हाई हो जाती है।
आज कोई भी मरीज या अटेंडेंट वेटिंग टाइम को लेकर बेचैन रहता है।
एक डॉक्टर के लिए सभी मरीज बराबर हैं वो चाहे कोई भी हो।
(2)OVER DIAGNOSIS AND DEFENSIVE MEDICINE –
डॉ. रेनू धस्माना ने चिकित्सा के वर्तमान परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि,”यदि किसी मरीज के सरदर्द होने पर उसे दवा दे दी जाये और उसके दो महीने बाद यदि उसको ब्रेन ट्यूमर निकल आये तो डॉक्टर पर नेग्लिजेंस का मामला बन जाता है।
इस तरह के मामले से बचने के लिए कुछेक डॉक्टर ओवर डायग्नोसिस और डिफेंसिव मेडिसिन का सहारा ले रहे हैं।”
(3)एक मछली से सारा तालाब गंदा —
मेडिकल जगत में सभी डॉक्टर एक जैसे नहीं होते हैं। एक आध डॉक्टर की लापरवाही की वजह से पूरी डॉक्टर बिरादरी को बदनामी झेलनी पड़ती है।
(4) खाकी से अनुशासन —
यदि हॉस्पिटल में एक भी पुलिसकर्मी वर्दी में उपस्थित हो तो डॉक्टर,मरीज और उनके तीमारदार सभी एक अनुशासन में रहते हैं।
(5)लिमिटेड मरीज तो डॉ. रहें कूल —
आमतौर पर डॉक्टर पर बड़ी संख्या में मरीजों को अटेंड करने का एक प्रेशर बना रहता है। जिसके चलते कभी-कभी व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन भी आ सकता है। यदि डॉक्टर को सीमित संख्या में पेशेंट देखने हों तो ज्यादा बेहतर परफॉरमेंस होने के चान्सेस होते हैं।
(6)डॉक्टर और स्टाफ समाज का हिस्सा —
बीते वर्षों में समाज में कईं परिवर्तन आये हैं।डॉक्टर और मरीज उसी समाज का हिस्सा हैं। इसलिए काफी हद तक डॉक्टर और स्टाफ का व्यवहार हमारे आसपास के समुदाय का ही प्रतिबिम्ब होता है।
कानून के मुताबिक देश में हॉस्पिटल की सम्पत्ति (डॉक्टर और स्टाफ सहित) को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में दोष सिद्ध होने पर 3 साल की सजा और 50,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।
कांफ्रेस की अध्यक्षता एसआरएचयू के कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने की।आयोजन समिति की अध्यक्ष डॉ.रेनू धस्माना ने विशेषज्ञों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया।
इस दौरान कॉन्फ्रेंस के विषय पर आधारित स्मारिका का भी विमोचन किया गया।
सम्मेलन में डॉ. विजेन्द्र चौहान, डॉ. मुश्ताक अहमद, डॉ. उमा भारद्वाज, डॉ. वाईएस. बिष्ट, साधना मिश्रा, डॉ.विनिता कालरा, डॉ. अनुराधा कुसुम, डॉ.संजॉय दास, डॉ. कैथी, ग्रेस मैडोना सिंह, हरलीन कौर मौजूद रहे।