अशासकीय विद्यालयों के अनुदान निरस्त को बताया “तुगलकी फरमान”,शिक्षक संघ की डोईवाला इकाई ने एसडीएम को दिया ज्ञापन

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देहरादून : प्रदेश सरकार के द्वारा अशासकीय विद्यालयों के अनुदान को निरस्त करने के निर्देश को “तुगलकी फरमान” बताते हुए उत्तराखंड माध्यमिक शिक्षक संघ ने इसका तीखा विरोध करते हुए आंदोलन करने की चेतावनी दी है।
इस बारे में शिक्षक संघ की पब्लिक इंटर कॉलेज डोईवाला की इकाई ने डोईवाला उपजिलाधिकारी को एक ज्ञापन सौंपा है।
उत्तराखंड सरकार के द्वारा प्रदेश के सभी जिलों के अशासकीय विद्यालयों की छात्र संख्या और परिणाम का आंकलन कर समीक्षा करने के निर्देश दिये गये हैं जिसके आधार पर सरकारी अनुदान समाप्त कर प्रबंधकीय व्यवस्था से विद्यालय चलाने की बात कही गयी है।
आज डोईवाला एसडीएम को शिक्षक संघ की ओर से चेतन कोठारी और ओमप्रकाश काला के द्वारा एक ज्ञापन सौंपा गया है।
ज्ञापन में कहा गया है कि मैनेजमेंट के स्कूलों में समीक्षा के आधार पर सरकारी अनुदान निरस्त करना शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के हितों पर प्रहार है।
यदि सरकार ऐसा करती है तो लगभग 4000 शिक्षक और शिक्षणेत्तर कर्मचारी भूख की कगार पर पहुंच जायेंगें।
उत्तराखण्ड माध्यमिक शिक्षक संघ के सदस्य चेतन कोठारी ने बताया कि अशासकीय विद्यालय सरकार से केवल वेतन का अनुदान लेते हैं जबकि सरकार की सारी शैक्षणिक योजनाओं का संचालन अपने खर्च पर करते हैं।
शिक्षक संघ के सदस्य ओमप्रकाश काला ने बताया कि अशासकीय विधालयों का बोर्ड परीक्षा परिणाम भी सरकारी विद्यालयों से बेहतर ही रहता है।
क्या कहता है उत्तराखंड माध्यमिक शिक्षक संघ —
इस संदर्भ में उत्तराखण्ड माध्यमिक शिक्षक संघ का स्पष्ट मत है कि अनुदान प्राप्त विद्यालयों को वित्तीय सहायता, वेतन वितरण अधिनियम 1971 के अंतर्गत प्राप्त है।
इस अधिनियम से शिक्षकों एवं कर्मचारियों को सेवा सुरक्षा प्राप्त है। इस अधिनियम से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है।
भविष्य में वित्त विहीन विद्यालयों को अनुदान देने की नीति सरकार बना सकती है। अनुदान दे, ना दे या किन शर्तों पर दे। लेकिन अनुदान प्राप्त विद्यालयों से अनुदान निरस्त करने की बात कहना हास्यास्पद है।
यदि सरकार, शासन या विभाग इस सम्बन्ध में कोई भी छेड़छाड़ करने की कोशिश करती है तो ऐसी स्थिति में शिक्षक और कर्मचारी आंदोलन करने को मजबूर होंगे।
उत्तराखण्ड माध्यमिक शिक्षक संघ किसी भी कीमत पर अनुदान प्राप्त विद्यालयों के शिक्षकों और कर्मचारियों के हितों पर कुठाराघात नहीं होने देगा।
ऐसा लगता है कि इस तुगलकी फरमान निकालने वाले अनु सचिव को वेतन वितरण अधिनियम 1971 में सेवा सुरक्षा शर्तों की जानकारी ही नहीं है।
इस सम्बंध में मा० मुख्यमंत्री, शिक्षा मन्त्री और शिक्षा सचिव से शीघ्र मिलकर इस पत्र की दुर्भावना के संदर्भ में कड़ा विरोध दर्ज कराया जाएगा। दूरभाष के माध्यम से उचित स्तर पर आवश्यक वार्ता हुई भी है।