ऋषि और गणिका की आत्माओं के उलट-फेर से कैसे बनी हास्यपूर्ण और रोचक स्थिति,दिखाया नाटक मंचन में
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देहरादून : भगवदज्जुकम संस्कृत का एक प्रसिद्द शास्त्रीय नाटक है।
सातवीं शताब्दी में इसकी रचना बोधायन के द्वारा की बतायी जाती है।
शास्त्रीय नाटकों को प्रस्तुत करने वाली दिल्ली की एक संस्था
प्रतिभा सांस्कृतिक संस्थान ने कल रानीपोखरी के
कोडसी अंतर्गत बडोगल में भगवदज्जुकम की प्रस्तुति दी।
और जब ऋषि और गणिका की आत्माएं बदली तो बंधा समां :—
वसंतसेना नाम की गणिका अपनी सेविका के साथ उद्यान में विहार के लिए आती है।
उसका प्रेमी रामिलक उससे मिलने आता है।
इसी बीच यमदूत जो किसी अन्य वसंतसेना नाम की स्त्री के प्राण लेने के लिए आता है
वो सर्प बनकर गणिका वसंतसेना को डस लेता है
और उसके प्राण लेकर यमलोक चला जाता है।
उसी समय उद्यान में एक ऋषि अपने शिष्य के साथ आते हैं।
शिष्य द्वारा वसंतसेना को मृत देखकर दुखी होने पर
ऋषि अपने प्राण वसंतसेना के शरीर में डाल देते हैं।
गणिका जीवित हो उठती है।
उधर गलत जीव की आत्मा को लाने पर
यमदूत को यमराज से डांट पड़ती है
और उसे प्राण लौटाने के लिए वापस भेजा जाता है।
जब यमदूत गणिका के प्राण लेकर वापस आता है तो वो देखता है कि
गणिका वसंतसेना एक ऋषि की तरह उपदेश दे रही होती है।
तब यमदूत वसंतसेना के प्राण ऋषि के शरीर में डाल देता है।
इस प्रकार ऋषि गणिका की तरह
और गणिका ऋषि की तरह बोलना शुरू कर देते हैं
और यहीं से एक रोचकपूर्ण और हास्य से भरपूर स्थिति बनती है।
जिसका मंचन किया गया।
यह नाटक मनोरंजन करने के साथ-साथ समाज में कुरीतियों पर व्यंग्य भी करता है।
जिससे समाज और सभ्य बने तथा अपने दायित्वों को समझे।
नाटक मंचन में कलाकार रिंकू,विक्की,रौद्री सिंह,पिहू कमल,जितेंद्र तोमर,
दीपचंद,शान त्यागी,हरिनारायण दास,प्रतिभा जेना के अलावा
निर्देशक भूमिकेश्वर रहे।नाटक के मंचन के अवसर पर बीरेंद्र सिंह रावत,
अरविन्द नेगी,करण बोहरा,विक्रम नेगी आदि के अलावा कईं दर्शक उपस्थित रहे।