हाल ही मैं देश के पूर्व मानव संसाधन मंत्री और लोकसभा सांसद पद्मविभूषण डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने स्वामी राम हिमालयन विश्व विद्यालय में प्रणब मुख़र्जी फाउंडेशन,क्रीड और एसआरएचयु के तत्वाधान में आयोजित एक दो दिवसीय क्षेत्रीय सम्मेलन में “शांति,सदभावना और आनंद : संक्रांति से रूपांतरण की ओर” विषय पर अपना अपना बीज वक्तव्य दिया। प्रस्तुत हैं उसके प्रमुख 5 बिंदु:
(1) फ्रेंच दार्शनिक रेने देकार्त का जिक्र :
मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि,”मानव के अंधकार के युग से बाहर निकलने की शुरुआत 16वी-17वी शताब्दी के यूरोप में पुनर्जागरण (रेनेसॉ) से हुई।जिसमें वैज्ञानिकों और दार्शनिकों की बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने फ्रेंच बुद्धिवादी दार्शनिक,रेने देकार्ते का जिक्र किया कि देकार्ते ने संशय विधि देते हुए कहा “Cogito Ergo Sum”, (I think,therefore I am) यानि “मैं सोचता हूँ,इसलिए मैं हूँ “, के बारे में बताया।
(2) समाज के परिवर्तन में विज्ञान की देन :
उन्होंने कहा की वैज्ञानिकों ने एक आदिम,अज्ञानी समाज को वैज्ञानिक सोच दी।जैव उत्पति को लेकर चार्ल्स डार्विन के प्राकृतिक वरणवाद को लेकर अब भी बहस छिड़ी हुई है। केप्लर,न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों के बिना अंतरिक्ष में जाना संभव नहीं था।
(3 )आप प्रकृति से गर्भनाल नहीं काट सकते :
डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि,”मन,बुद्धि,शरीर,आत्मा सब एक ही तंत्र का हिस्सा है ,आप प्रकृति के साथ अपने गर्भ रज्जु(umblical cord) के रिश्ते को समाप्त नहीं कर सकते हैं।किसी भी तकनीक का अंधाधुंध प्रयोग उचित नही है अपितु पर्यावरण हितैषी( Nature Friendly)तकनीक अपनाने की आवश्यकता है।
(4)कालिदास और शेक्सपियर जैसी उपमाओं का लोप :
डॉ. जोशी ने कहा कि इंटरनेट के दौर में महाकवि कालिदास और शेक्सपियर जैसी “उपमा” अब देखने को नहीं मिल रही हैं।अब मानवीय रिश्ते “भावानात्मक” नहीं “अर्थात्मक” हो गए हैं।मोबाइल फ़ोन में साहित्य का पुट नहीं झलकता बल्कि टूटे शब्दों से अर्थ निकाले जा रहे हैं।
(5)समतावादी,खुशहाल देश और जीडीपी :
डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि,”विकास की अंधी दौड़ में हम सिर्फ आंकड़ों पर न जाएं। यदि देश की 6-9 प्रतिशत जीडीपी बढ़ती है तब प्राकृतिक संसाधनों का क्या ? क्या सीमित प्राकृतिक संसाधन लगातार घट नहीं रहे हैं ? साथ ही विकास की अंधी दौड़ में क्या हम एक समतावादी,स्वस्थ,खुशहाल देश बना पा रहे हैं ?हमें विकास की दर गिराने या कम करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित दोहन करना होगा।