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देहरादून (ऋषिकेश)- कंप्यूटर इंजीनियरिंग से करियर की शुरुआत की फोटोग्राफी का भी शौक है। लेकिन, धुनों की साज ने उनके दिल के तार इस तरह छेड़े कि
एक कंप्यूटर इंजीनियर कॉरपोरेट जगत की चकाचौंध वाली जॉब छोड़ शास्त्रीय संगीत की साधना में रम गया।
मूलरूप से पौड़ी के कठूरबड़ा गांव में जन्मे आशीष कुकरेती के पिताजी सरकारी नौकरी में कार्यरत थे।
इस वजह से ट्रांसफर के चलते उनका पालन-पोषण उत्तर भारत के विभिन्न शहरों में हुआ।
आशीष के दादा जी ने लाहौर में संगीत की तालीम ली थी। वह बचपन में अक्सर दादा जी को भजन व कीर्तन में गाते हुए सुनते थे।
तभी से संगीत के लिए एक कसक पैदा हो गई थी। इस बीच उनकी पढ़ाई जारी रही। साल 2006 कंप्यूटर एंड टेली कम्यूनिकेशन से डिप्लोमा किया।
साल 2010 में दिल्ली में उन्हें एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब भी मिल गई।
इस बीच संगीत को लेकर उनकी रुचि कम नहीं हुई।
नौकरी करते समय जब भी मौका मिलता रियाज करता था, लेकिन रोजाना अलग-अलग शिफ्ट के चलते बहुत दिक्कत होती थी। ऐसे में उनके मित्र ने उन्हें संगीत के क्षेत्र में ही आगे बढऩे को प्रोत्साहित किया।
साल 2013 में नौकरी छोड़कर संगीत की राह पकड़ ली।
संगीत एक, रुप अनेक
आशीष भाई बताते हैं कि पं.भीमसेन जोशी जी उनके प्रेरणास्रोत हैं। हम जैसा संगीत सुनते हैं वैसा ही हम पर प्रभाव पड़ता है।
संगीत के भले ही सात सुर हों, लेकिन उन सुरों से पूरी दुनिया बंधी हुई है। सुर वही हैं बस रुप बदल जाता है। उत्तराखंड, बंगाल हो या विदेशी धरती अरब, जापान और चीन संगीत वही है उसकी धुनें बदल जाती हैं और इन सबका मूल है शास्त्रीय संगीत।
बच्चों को देते हैं निशुल्क तालीम
खास बात यह है कि आशीष दस से पंद्रह बच्चों को निशुल्क शास्त्रीय संगीत की तालीम भी दे रहे हैं।
आशीष कहते हैं संगीत एक साधना है। जो कुछ दिन या महीनों में नहीं की जा सकती। कम से कम इतनी समझ जरुर हो कि संगीत हम जो सुन रहे हों उसे पहचान सकें।
29 फरवरी व एक मार्च को शास्त्रीय संगीत संध्या
‘श्रुति-सरिता’ के तहत स्वर्गाश्रम ट्रस्ट धर्मशाला में 29 फरवरी व 01 मार्च 2020 को शास्त्रीय संगीत संध्या (सायं 07 बजे से रात 10 बजे तक) का आयोजन करवा रहे हैं।
प्रवेश नि:शुल्क है। संगीत साधकों से आग्रह है कि संध्या में पुहंचकर आशीष भाई जैसे युवा संगीत साधक को प्रोत्साहित करें।