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एक्सपर्टस की चेतावनी मानते तो,टल सकती थी 2013 की आपदा,हरीश रावत ने क्यूं समय रहते एक्शन नही लिया :सतपाल महाराज

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देहरादून : 2013 की केदारनाथ आपदा के बोतल में बंद जिन्न को एक बार फिर बाहर निकालते हुये

प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कांग्रेस नेता हरीश रावत पर हमला बोला है।

सतपाल महाराज ने कहा कि हरीश रावत ने हिम विशेषज्ञों की चेतावनियों को क्यों अनदेखा किया ?

क्या अपनी इस बड़ी भूल की भी वह माफी मांगेगे ?

प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कांग्रेस नेता एवं

तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन मंत्री  हरीश रावत से पूछा है कि

जब चौराबाड़ी ग्लेशियर के आस पास बर्फीली झीलों की संख्या में वृद्धि हो रही थी

और हिम विशेषज्ञों द्वारा लगातार उस समय किसी बड़ी त्रासदी की चेतावनी दी जा रही थी

तो उस समय केंद्रीय जल संसाधन मंत्री रहते हरीश रावत ने इन चेतावनियों को अनदेखा क्यों किया ?

श्री महाराज ने कहा कि 2012-2014 में जल संसाधन मंत्री रहते हरीश रावत को चौराबाडी के साथ साथ

ऐसे तमाम ग्लेशियरों जिनके विषय में हिम विशेषज्ञ और पर्यावरणविद् बार बार चेतावनी दे रहे थे

उस पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की। उन्हें स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसे मामले में उन्होने निष्क्रियता क्यों बरती ?

श्री महाराज ने कहा कि यदि वह इस विषय पर काम करते तो 2013 की त्रासदी के खतरनाक प्रभाव को रोका जा सकता था।

 श्री सतपाल महाराज ने कहा कि डब्ल्यू आई एच डी के वरिष्ठ ग्लेशियोलॉजिस्ट द्वारिका प्रसाद डोभाल ने

उस समय बताया था कि पिछले 100 वर्षों में अफगानिस्तान से म्यांमार तक

हिंदुकुश हिमालय में कई स्थानों पर कम से कम 50 ग्लेशियर झील का प्रकोप देखा गया है।

अगस्त 1929 में सबसे पहले दर्ज की गई घटनाओं में शामिल एक घटना है

जिसमें जब काराकोरम पहाडों में चोंग कुमदन ग्लेशियर के आधार पर

एक झील ने सिंधु घाटी में बाढ़ के लिए 15 बिलियन क्यूबिक पानी

छोड़ने के लिए अपने मार्जिन को तोड़ दिया था।

हरीश रावत बतायेंगे कि ऐसे तमाम उदाहरण और पर्यावरणविदो की

चेतावनियों के बावजूद उस समय बतौर मंत्री रहते उन्होने क्या ऐक्शन लिया ?

अपनी इस निष्क्रियता के लिए भी क्या वह उत्तराखंड की जनता से माफी मानेंगे ?

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