देहरादून : उत्तराखंड की समृद्ध परम्पराओं में से एक “गाडू घडी” को निभाते हुए आज व्रतधारी सुहागिनों ने भगवान श्री बद्रीनाथ को अर्पित किये जाने के लिए तिल के तेल को अपने हाथों से तैयार किया।
बीते ज़माने की टिहरी रियासत के राज परिवार से जुडी है ये परम्परा :—–
मान्यता है कि टिहरी के राजा को भगवान बद्रीनाथ का बोलता रूप कहा जाता है |
उत्तराखंड की टिहरी रियासत के राज परिवार और उससे जुडी महिलाओं के द्वारा भगवान श्री बद्री विशाल के अभिषेक,पूजा-अर्चना के लिए तिल के तेल निकालने की “गाडू घडी” परम्परा को पीढ़ी दर पीढ़ी निभाया जा रहा है।
आज मुंह पर पीला वस्त्र बांधे इन व्रतधारी महिलाओं ने सिल-बट्टे पर तिल के तेल को अपने हाथों से तैयार किया जिसे एक घड़े में भरकर श्री बद्रीनाथ धाम रवाना किया गया है।
इसी तेल से 10 मई सुबह 5:30 बजे कपाट खुलने के बाद अगले छः महीने भगवान का श्रृंगार और पूजा अर्चना की जाऐगी।
महारानी माला राज़ लक्ष्मी टिहरी मे बताया कि, ”सुबह से ही व्रत रख कर भगवान की सेवा के लिए दूर दराज के क्षेत्रो से आई ये सभी महिलाय किसी न किसी रूप से राज महल की इस परम्परा से जुडी हुई है।
अपने हाथो से तिल को पीस कर उसका तेल निकाल कर बद्री भगवान की शीतनिद्रा से जागने के बाद रोज ही भगवान की मूर्ति की मालिश और अभिषेक के लिए काम आता है।
इस परम्परा से जुड़ कर सभी जन्मो-जन्मो का पुण्य कमा लेती है और अपने को सौभाग्यशाली मानती है।”