
स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) जॉलीग्रांट की प्रायोजित संस्था हिमालयन इंस्टिट्यूट हॉस्पिटल ट्रस्ट (एचआईएचटी) का जल आपूर्ति व संरक्षण के लिए ‘भगीरथ’ प्रयास जारी है.
विगत दो दशकों से दुर्गम पहाडी क्षेत्रों के 550 से ज्यादा गांवों में पानी पहुंचाने के साथ ही 26 प्रदेशों में पानी एवं स्वच्छता के अभियान को बढ़ाया है।
इसके साथ ही विश्वविद्यालय कैंपस में जल सरंक्षण एवं भूजल संवर्धन के लिए 2.5 लाख लीटर के क्षमता के 10 रिचार्ज पिट एवं 2 बोरवेल रिचार्ज का निर्माण करवाया गया।
विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों में शौचालय हेतु 1.5 लाख लीटर क्षमता का वर्षा जल संचयन टैंक तथा 07 लाख लीटर प्रति दिन क्षमता का एसटीपी का निर्माण कर जल सरंक्षण की दिशा में अनूठी मिसाल पेश की है।
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रजनीश प्रताप सिंह तेज
देहरादून : 25 वर्ष पहले ही वाटसन का गठन
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि यह अच्छा संकेत है कि पानी की महत्ता को आज कई संस्थान समझ रहे हैं। लेकिन हमारे संस्थान में वर्ष 1998 में करीब 25 वर्ष पहले ही जल आपूर्ति व संरक्षण के लिए एक अलग वाटसन (वाटर एंड सैनिटेशन) विभाग का गठन किया जा चुका है। तब से लेकर अब तक वाटसन की टीम द्वारा उत्तराखंड के सुदूरवर्ती व सैकड़ों गांवों में पेयजल पहुंचाया जा चुका है।
एचआईएचटी है जल शक्ति मंत्रालय के साथ सेक्टर पार्टनर एवं मुख्य संसाधन केंद्र (केआरसी)
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने एचआईएचटी को राष्ट्रीय जल जीवन मिशन के ‘हर घर जल योजना’ के सेक्टर पार्टनर एवं मुख्य संसाधन केंद्र (के.आर.सी.) के तौर पर नामित किया है।
यह एक दिन या महीने भर की मेहनत का नतीजा नहीं है, बल्कि सालों से जल संरक्षण के क्षेत्र में एचआईएचटी टीम के द्वारा किए गए बेहतरीन प्रयास की सफलता है।
इसके तहत एसआरएचयू के एक्सपर्ट 26 राज्यों के पब्लिक हेल्थ इंजीनियर्स एवं पंचायतों को ट्रेनिंग दे रहे हैं।
रोजाना 07 लाख लीटर पानी रिसाइकल
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि एसआरएचयू कैंपस में करीब 1.25 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाया गया है।
इस प्लांट के माध्यम से 07 लाख लीटर पानी को रोजाना शोधित किया जाता है। शोधित पानी को पुनः कैंपस में सिंचाई व बागवानी के लिए इस्तेमाल किया जाता है। भविष्य में इस प्लांट की क्षमता बढ़ाकर इसी शोधित पानी को शौचालय में भी इस्तेमाल को लेकर हम कार्य कर रहे हैं।
वाटर लेस यूरिनल से बचाते हैं सलाना लाखों लीटर पानी
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने कहा कि जल संरक्षण के लिए हमने एक और कारगर शुरुआत की है। विश्वविद्यालय के सार्वजनिक शौचालयों में अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित वाटर लेस यूरिनल लगवाए जा रहे हैं।
शुरुआती चरण में अभी तक 100 से ज्यादा वाटर लेस यूरिनल लगाए जा चुके हैं। भविष्य में इस तरह के वाटर लेस यूरिनल कैंपस के सभी सार्वजनिक शौचालयों में लगवाए जाएंगे।
स्वच्छता के दृष्टिकोण से भी यह बेहतर है। अमूमन एक यूरिनल से हम प्रतिवर्ष लगभग 1.50 लाख लीटर पानी को बर्बाद होने से बचाते हैं।
12 रेन वाटर हार्वेस्टिंग रिचार्ज पिट बनाए गए
कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने बताया कि बरसाती पानी के सरंक्षण के लिए एसआरएचयू कैंपस में वर्तमान में करीब 50 लाख रुपये की लागत से 12 रेन वाटर हार्वेस्टिंग रिचार्ज पिट बनाए गए हैं। डॉ. धस्माना ने बताया कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग रिचार्ज पिट के बहुत फायदे हैं।
ऐसा करने से बरसाती पानी आसानी से जमीन में चले जाता है, जिस कारण जमीन में पानी का स्तर बना रहता है।
5000 प्रतिभागियों को जल सरंक्षण हेतु प्रशिक्षित करने का लक्ष्य
एसआरएचयू अब तक 60 प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से 2970 प्रतिभागियों को जल सम्बंधित विभिन्न्न विषयों पर प्रशिक्षित कर चुका है। इस वर्ष लगभग 5000 प्रतिभागियों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य है। इसके लिए पर्वतीय राज्यों विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर व पूर्वोत्तर राज्यों में पहल की जाएगी।
एसआरएचय के कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि हाल में सिक्किम व जम्मू-कश्मीर में प्रशिक्षण कार्यक्रम किया गया। उत्तराखंड के तीन जनपदों देहरादून, हरिद्वार एवं रुद्रप्रयाग की 109 न्याय पंचायतों में प्रशिक्षण का कार्य विधिवत रूप से संपन्न कराया जा रहा है।
हैंडपंप द्वारा स्रोत संवर्द्धन के कार्य हेतु अभिनव तकनीकी का पेटेंट
क्षमता संवर्द्धन कार्यक्रम के साथ ही संस्थान द्वारा स्रोत संवर्द्धन की दिशा में ठोस कदम उठाते हुए हैण्डपम्प द्वारा स्रोत संवर्द्धन के कार्य हेतु अभिनव तकनीकी पेटेन्ट की गई है।
‘विश्व जल दिवस 2023 की थीम “तेजी से परिवर्तन” है, जो वैश्विक जल संकट से निपटने के लिए अब तक हुई कार्यवाही की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। विश्व जल दिवस पर इस तकनीकी को जन सामान्य तक पहुंचाने हेतु मार्गदर्शिका प्रकाशित की जा रही है ।
जल सरंक्षण एवं जल प्रबंधन को व्यापक प्रभावी बनाने के लिए जन आंदोलन के रूप में बढ़ावा दिया जाना जरूरी है। जल, जंगल, जमीन सिर्फ नारा नहीं बल्कि हमारी पहचान है।
भावी पीढ़ी के सुरक्षित भविष्य के लिए जरूरी है जल संरक्षण। उन्होंने लोगों से जल के इस्तेमाल को औषधि की तरह सीमित मात्रा में इस्तेमाल करने की अपील की।