देहरादून : जॉलीग्रांट स्थित स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) में डर्मेटोपैथोलॉजी की नई उभरती हुई तकनीकों के मंथन को देशभर से डर्मेटोलॉजिस्ट व पैथोलॉजिस्ट जुटे।
चंडीगढ़ के डाॅ. संजीव हांडा ने कहा कि त्वचा से संबंधित रोग अधिकतर दिखने में समान होते है, लेकिन ईलाज सबका अलग होता है।
यहां पर पैथोलाॅजी की भूमिका महत्वपूर्ण है, जिसमें बायोप्सी के जरिये एक नमूना लिया जाता है और बीमारी का पता लगाकर उसका सही ईलाज किया जाता है।
चैन्नई से डाॅ. लीना डेनिस ने कहा कि इस कार्यशाला से युवा त्वचा विशेषज्ञों के साथ पैथोलोजिस्ट को लाभ होगाा।
उन्होंने कहा कि कार्यशाला का उद्देश्य त्वचा रोगों में ऊतक निदान की आवश्यकता के बारे में जनता को जागरूक करना है, जिससे बायोप्सी शब्द उन्हें डराए नहीं।
इस अवाश्यक क्षेत्र में प्रशिक्षण से क्षेत्र के लोगों को प्रदान की जा रही स्वास्थ्य सेवाओं में और सुधार होगा।
डर्मेटोपैथोलाॅजी सोसायटी ऑफ़ इंडिया, आईएडीवीएल देहरादून व हिमालयन इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के डर्मेटोलॉजी व पैथोलॉजी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में कार्यशाला का आयोजन हुआ।
आयोजन समिति की सचिव डॉ. रश्मि जिंदल ने बताया कि डर्मेटोपैथोलॉजी की यह दूसरी वार्षिक कॉन्फ्रेंस है।
जिसमें उत्तराखंड सहित दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ, चेन्नई ,कोलकाता, जोधपुर, उत्तर प्रदेश से डर्मेटोपैथोलाॅजिस्ट शामिल हुए है।
उन्होंने चिकित्सक, शोधार्थी व छात्रों को इस क्षेत्र हो रहे बदलाव व नई तकनीकों से अवगत कराया।
डॉ जिंदल ने कहा कि कॉन्फ्रेंस में लेक्चर, पैनल डिस्कसन, पेपर व पोस्टर प्रेजेंटेशन के अतिरिक्त पीजी छात्रों के लिए पैथोलाॅजी व डर्मेटोलाॅजी विषय पर क्विज प्रतियोगिता भी आयोजित की गयी।
कॉन्फ्रेंस में 100 से ज्यादा डेलीगेट्स शामिल हुये।
साथ ही विशेषज्ञों द्वारा प्रतिभागियों को हैंड्स ऑन माइक्रोस्कॉपी ट्रेनिंग भी दी गयी।
इस अवसर पर चिकित्सा अधीक्षक डाॅ. वाईएस बिष्ट, डाॅ. विजय बकाया, डाॅ. अनुराधा कुसुम, डा. नादिया शिराजी आदि उपस्थित थे।