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“फिश टेक्नोलॉजी” पर हिमालयन यूनिवर्सिटी में हुआ मंथन

हांगकांग, न्यूयार्क, साईप्रस सहित देश-विदेश के 70 विशेषज्ञों ने किया प्रतिभाग

कैंसर जैसी बिमारियों की सही पहचान और निदान में महत्वपूर्ण है “फिश टेक्नोलॉजी”

देहरादून : स्वामी राम हिमालयन यूनिवर्सिटी द्वारा रोगों की पहचान की महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी “फिश” पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें देश-विदेश के विषय विशेषज्ञों द्वारा मंथन किया गया।

पैथोलॉजी विभाग और कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला का उद्घाटन डीन एचआईएमएस डॉ. मुश्ताक अहमद, डॉ. सुनील सैनी, डॉ. वाईएस बिष्ट, डॉ. सुरेश झंवर ने डॉ. स्वामी राम के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर किया।

क्या कहा विशेषज्ञों ने ?

मुख्य अतिथि डॉ. मुश्ताक अहमद ने कहा कि किसी भी बीमारी की पहचान व उसके निदान में पैथोलॉजी जांच महत्वपूर्ण है। जिसके आधार पर सही ईलाज किया जाता है।

न्यूयार्क अमेरिका से आये डॉ. सुरेश झंवर ने कहा कि फिश की उच्च संवेदनशीलता, विशिष्टता और गति ने इसे एक महत्वपूर्ण साइटोजेनेटिक तकनीक बना दिया है। जिसने रक्त संबंधी और ठोस ट्यूमर के अनुसंधान और निदान में महत्वपूर्ण प्रगति प्रदान की है। विशेषकर कैंसर की पहचान और ईलाज में इस उन्नत तकनीक से बहुत फायदा हुआ है।

डॉ. जयराम ने बताया कि मनुष्य के शरीर में मौजूद गुणसूत्रों में असमानताओं के चलते कई प्रकार की बीमारी हो सकती है। जिसका पता इस तकनीक के माध्यम से लगाया जा सकता है।

डॉ. नीना चौहान ने कहा कि अनुवांशिक और अन्य घातक बीमारी में फिश तकनीक की सटीक जांच व दुष्प्रभाव रहित होने से लाभ हुआ है।

इसके अतिरिक्त हांगकांग से डॉ. मॉर्को, न्यूयॉर्क से डॉ. मीना झंवर, साइप्रस से डॉ. फिलीपॉस, टाटा मेमोरियल कैंसर सेंटर कोलकता से आये डॉ. मयूर परिहार ने उपस्थित प्रतिभागियों को फिश तकनीक पर व्यख्यान दिया।

क्या है “फिश टेक्नोलॉजी” ?

फिश से तात्पर्य है “फ्लोरोसेंस इन सीटू हाइब्रिडाइजेशन” । “फिश” गुणसूत्रों में असमानताओं की पहचान के लिए प्रयोग होने वाली उन्नत तकनीक है। इस टेक्नोलॉजी में मनुष्य के जेनेटिक पदार्थ (डी.एन.ए. अथवा आर.एन.ए.) के एक खण्ड की एकल शृंखला को प्रोब के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जिसे रेडियोएक्टिव (फ्लोरोसेंट) से लेबल किया जाता है। यह प्रोब टारगेट के न्यूक्लीओटाइड से कॉम्प्लिमेंटरी होने की वजह से पैरिंग अर्थात हाईब्रीडाइजेशन करती है।जिससे रोग की पहचान में आसानी होती है।

कार्यशाला में डॉ. नीना चौहान, डॉ. अुनराधा कुसुम, डॉ. दुष्यंत गौर, डॉ. नादिया सिराजी, डॉ. विकास श्रीवास्तव ने सहयोग दिया।

 

 

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