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देहरादून :अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत के मार्गदर्शन में डीएमडी अवेयरनैस डे मनाया गया।
जिसमें विशेषज्ञ चिकित्सकों ने बच्चों में अनुवांशिकरूप से पाई जाने वाली ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी पर चर्चा की।
साथ ही उन्होंने इसके कारणों, लक्षणों व इससे बचाव की जानकारी भी दी।
डीएमडी जनजागरुकता दिवस पर संस्थान के बालरोग विभाग की ओर से निदेशक पद्मश्री प्रो. रवि कांत के निर्देशन में संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
बालरोग विभागाध्यक्ष डा. नवनीत कुमार बट्ट ने बताया कि विभाग द्वारा आगे भी इस तरह के जनजागरुकता कार्यक्रमों का नियमिततौर पर आयोजन किया जाएगा।
विभाग के विशेषज्ञ चिकित्सक डा. प्रशांत कुमार वर्मा ने बताया कि ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बच्चों में सबसे आम अनुवांशिक मस्कुलर डिस्ट्रॉफी है।
यह विश्वस्तर पर अनुमानित 3,500 पुरुषों में से एक व्यक्ति में पाई जाती है।
यह बीमारी डीएमडी जीन में परिवर्तन के कारण होती है।
उन्होंने बताया कि इस बीमारी में मांस पेशियों की कोशिकाओं में संकुचन और विश्राम में अंतर आ जाता है, जिसके कारण शरीर की मांस पेशियां कमजोर पड़ जाती है।
यह एक्स-लिंक्ड तरीके से फैलता है, इसलिए महिलाओं में यह रोग आम नहीं है।
प्रभावित पुरुषों में अंगों में प्रगतिशील कमजोरी होती है और लगभग 4 से 5 वर्ष की आयु में पैर की मांसपेशियों की अतिवृद्धि होती है।
उन्हें सालाना चेक-अप और फिजियोथेरेपी की जरूरत होती है।
अगले पुरुष भाई-बहन में बीमारी का पुनरावृत्ति जोखिम 50% तक है
और परिवार में बीमारी को रोकने के लिए प्रसव पूर्व निदान सबसे अच्छा तरीका है।
उन्होंने बताया कि एम्स संस्थान के बाल रोग एवं चिकित्सा विभाग में इस बीमारी की परीक्षण सुविधाएं जल्द उपलब्ध हो जाएंगी।
साथ ही वर्तमान में विभाग में प्रसव पूर्व परामर्श सहित रोग प्रबंधन के लिए विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध हैं।
डॉ. मनीषा नैथानी की देखरेख में जैव रसायन विभाग डीएमडी जीन म्यूटेशन का आणविक परीक्षण शुरू करने जा रहा है।
बाल चिकित्सा हड्डी रोग सलाहकार डॉ. विवेक सिंह विकृतियों का उपचार प्रदान करते हैं।
बताया गया है कि संस्थान में हड्डी रोग विभाग के डा. सन्नी चौधरी इसी रोग के नए इलाज को लेकर शोध कार्य कर रहे हैं।
इस कार्यक्रम के आयोजन में बाल रोग विभाग के डा. हरि गैरे ने सहयोग प्रदान किया ।