उत्तराखंड में इस दिन दीपावली मनाना है शास्त्र सम्मत: आचार्य चंडी प्रसाद घिल्डियाल
Celebrating Diwali on this day in Uttarakhand is in accordance with the scriptures: Acharya Chandi Prasad Ghildial

देहरादून,19 अक्टूबर 2025 : इस साल 2025 में दीपावली के पर्व की सही तिथि (20 अक्टूबर या 21 अक्टूबर) को लेकर दुविधा की स्थिति है.
देश भर के विद्वानों के बीच सोशल मीडिया पर सीधी बहस चल रही है.
इस दुविधा के बीच, उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल “दैवज्ञ” ने अपना बहुप्रतीक्षित और निर्णायक बयान दिया है.
उन्होंने स्पष्ट किया है कि पर्व का निर्णय धर्मशास्त्र का विषय है, जबकि काल गणना ज्योतिष शास्त्र का
उन्होंने बताया कि देशांतर और अक्षांश में अंतर के कारण भारत के विभिन्न नगरों में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय में एक घंटे तक का अंतर आ जाता है,
जिससे पर्व निर्णय में समानता नहीं हो पाती है।
यही कारण है कि काशी विद्वत परिषद ने स्थानीय काल गणना और शास्त्र प्रमाण के आधार पर 20 अक्टूबर को दीपावली मनाने का निर्णय दिया है,
जबकि अन्य प्रदेशों की विद्वत परिषदों ने भी स्थान और काल गणना के आधार पर किसी ने 20 तो किसी ने 21 अक्टूबर को दीपावली मनाने का निर्णय दिया है.
ज्योतिषीय दुविधा समाप्त: आचार्य डॉ. चंडी प्रसाद घिल्डियाल ‘दैवज्ञ’ ने स्पष्ट की दीपावली की सही तिथि
20 या 21 अक्टूबर 2025: उत्तराखंड ज्योतिष रत्न ने बताया- कब होगा महालक्ष्मी पूजन और दीपोत्सव?
दोनों दिन अमावस्या, कब करें लक्ष्मी पूजन ?
आचार्य दैवज्ञ ने बताया कि इस वर्ष 2025 में, 20 अक्टूबर और 21 अक्टूबर दोनों दिन अमावस्या तिथि विद्यमान है,
जिससे आम जनता में भ्रम की स्थिति है कि लक्ष्मी पूजन किस दिन किया जाए।
उन्होंने धर्मशास्त्र सम्मत निर्णय देते हुए कहा, धर्मशास्त्र निर्णय सिंधु के अनुसार, महालक्ष्मी पूजन एवं दीपोत्सव प्रदोष काल अमावस्या में और तंत्र-मंत्र साधना निशीथ काल में ही हो सकती है।
उन्होंने विद्वानों से जनमानस को सही मार्गदर्शन देने का आह्वान किया
राजगुरु के नाम से प्रसिद्ध डॉ. चंडी प्रसाद घिल्डियाल ‘दैवज्ञ’ ने महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि देश भर के लगभग 21 पंचांगों के अनुसार:
20 अक्टूबर को चतुर्दशी तिथि अपराह्न 3:45 पर समाप्त हो रही है।
इसके बाद अमावस्या तिथि प्रारंभ होकर प्रदोष काल और निशीथ काल को व्याप्त करते हुए अगले दिन यानी 21 अक्टूबर को शाम 5:55 बजे तक विद्यमान है।
चूँकि 21 अक्टूबर को सूर्यास्त 5:35 बजे हो रहा है, इस प्रकार दोनों दिन प्रदोष काल में अमावस्या तिथि है।
निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु का हवाला देते हुए आचार्य दैवज्ञ ने कहा कि प्रदोष काल लक्ष्मी पूजन के लिए अधिक बलवान होता है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार, दोनों दिन प्रदोष में अमावस्या हो तो ‘परा’ तिथि को लेने का निर्णय किया गया है।
इसके अलावा, कृष्णपक्ष में चतुर्दशी विद्धा (20 अक्टूबर) के बजाय प्रतिपदा संयुक्त अमावस्या (21 अक्टूबर) श्रेष्ठ होती है।
अक्षांश और देशांतर में अंतर को स्पष्ट करते हुए आचार्य दैवज्ञ ने स्पष्ट कहा:
पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य भागों में दीपावली 20 अक्टूबर को मनाया जाना शास्त्र सम्मत है।
पूरे भारतवर्ष में मंत्र और तंत्र सिद्धि के लिए भी निशीथ काल व्यापिनी अमावस्या में 20 अक्टूबर को अर्धरात्रि में साधना की जाएगी।
परंतु, पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित गढ़वाल और कुमाऊं मिलाकर पूरे उत्तराखंड में:
20 अक्टूबर को छोटी दीपावली (नरक चतुर्दशी) मनाई जाएगी।
21 अक्टूबर को प्रदोष काल में (सायंकाल 5:35 से 8:14 तक) महालक्ष्मी पूजन तथा दीपोत्सव का त्योहार मनाना शास्त्र सम्मत है।
उत्तराखंड के पंचांगों के निर्माण में 26°30′ से 29°30′ अक्षांश के आधार का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा कि यहां सभी पर्व एक ही समय पर मनाए जाने की परंपरा रही है, और इस बार महालक्ष्मी पूजन के लिए 21 अक्टूबर की तिथि सर्वमान्य होगी।