DehradunExclusive

परवादून बार एसोसिएशन ने उठायी नगर पालिका डोईवाला में राजस्व अधिनियम के तहत सुनवाई की मांग

परवादून बार एसोसिएशन ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से नगर पालिका डोईवाला के अंतर्गत राजस्व अधिनियम के अंतर्गत पुनः सुनवाई प्रारंभ करने की मांग उठायी है.
> राजस्व अधिनियम के तहत दाखिल खारिज,सीमांकन पर है रोक
> नगर पालिका की जनता को स्वामित्व की जानकारी में है दिक्कत
> नगर पालिका क्षेत्र में जमीनों की धोखाधड़ी की बढ़ी आशंका
> नगर पालिका को होगा दाखिल खारिज,सीमांकन का अधिकार
वेब मीडिया के विश्वसनीय नाम
यूके तेज से जुड़ने के लिये
वाट्सएप्प करें 8077062107
रजनीश प्रताप सिंह ‘तेज’

देहरादून :

क्या है परवादून बार एसोसिएशन की मांग ?

बीती 7 जुलाई को परवादून बार एसोसिएशन ने एसडीएम के माध्यम से ज्ञापन भेजकर मुख्यमंत्री को नगर पालिका डोईवाला के अंतर्गत राजस्व अधिनियम के अंतर्गत सुनवाई पुनः प्रारंभ करने की बात कही है.

ज्ञापन में कहा गया है कि वर्तमान में नगर पालिका डोईवाला तथा अन्य नगर पालिका,नगर निगम में निहित भूमि में राजस्व अधिनियम के अंतर्गत सुनवाइयों जैसे दाखिल खारिज,सीमांकन आदि की कार्यवाहियों पर रोक लगा दी गयी है. जिससे क्षेत्रवासियों व आम जनता को अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

राजस्व अधिनियम के अंतर्गत नगर पालिका क्षेत्र की आम जनता को स्वामित्व की सही जानकारी न मिल पाने के कारण जमीनों की धोखाधड़ी की आशंका बढ़ गयी है.

दाखिल खारिज न होने की दशा में बैंकों से लोन आदि लेने में भी आमजन को अत्याधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

बार एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री से नगर पालिका क्षेत्र में राजस्व अधिनियम की कार्यवाहियों को अविलंब शुरू करने की मांग की है.

ज्ञापन देने वालों में परवादून बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट फूल सिंह लोधी,महासचिव मनोहर सैनी,सुशील वर्मा,संदीप जोशी,साकिर हुसैन,महेश लोधी,जुबेर,सुरेश भट्ट आदि उपस्थित थे.

क्या है कानूनी स्थिति ?

प्राप्त जानकारी के अनुसार 02 नवंबर 2021 को उत्तराखंड राजस्व परिषद के अध्यक्ष ओमप्रकाश ने सचिव उत्तराखंड को लिखे पत्र में उल्लेख किया था.

जिसका आशय यह है कि रिट संख्या -2414/2020 में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 16.12.2020 के क्रम में महाधिवक्ता,नैनीताल से प्राप्त राय के अनुसार प्रदेश के म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन क्षेत्रांतर्गत लंबित नामान्तरण/दाखिल खारिज के प्रकरणों का भू राजस्व अधिनियम की धारा-34 व 35 की प्रक्रिया के अंतर्गत निस्तारण करना माननीय उच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 16.12.2020 की अवमानना होगी.

इसके अतिरिक्त रिट पिटीशन संख्या 709/2022 ,संतोष अग्रवाल बनाम कमिश्नर गढ़वाल,माननीय उच्च न्यायालय,नैनीताल में भी उपरोक्त निर्णय को सही ठहराया गया है.

सरल शब्दों में इसका अर्थ यह हुआ कि उत्तराखंड के म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन/नगर निगम/नगर पालिका इत्यादि के क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली भूमि के दाखिल खारिज,सीमांकन इत्यादि मामलों का निस्तारण भू-राजस्व अधिनियम के तहत न होकर संबंधित नगर पालिका,नगर निगम इत्यादि के द्वारा किया जायेगा.

क्या है व्यवहारिक दिक्क्त ?

इन मामलों में प्रैक्टिकल समस्या यह है कि नगर पालिका/नगर निगम इत्यादि में पटवारी(लेखपाल),तहसीलदार जैसे भूमि की नाप-जोख,भू-अभिलेख का रिकॉर्ड बनाने इत्यादि कार्यों के लिये निपुण (एक्सपर्ट) कर्मचारी व अधिकारी उपलब्ध नही हैं.

इसके साथ ही नगर पालिका व नगर निगम इत्यादि के पास वर्तमान में भू-राजस्व से ऐसे कोई अभिलेख भी प्राप्त नही हैं जिनसे उनके क्षेत्र अंतर्गत भूमि की सही-सही वास्तविक और व्यावहारिक जानकारी हो.

क्या हो सकता है समाधान ?

चूंकि यह एक व्यापक जनहित और उच्च स्तर का विषय है इस विषय में राज्य सरकार माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल के निर्णय दिनांक 16.12.2020 के विरुद्ध संविधान के अनुच्छेद-227 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय में अपील दायर कर सकती है.

राज्य सरकार इस विषय में नगर निगम/नगर पालिका को भू-राजस्व के सामान ही लेखपाल,तहसीलदार जैसे भू-अभिलेख के जानकार,एक्सपर्ट स्टाफ की अतिरिक्त नियुक्ति कर सकती है.

जिससे नगर पालिका/नगर निगम इत्यादि आम जनता को भू-अभिलेख के मामलों में सुचारु और सुविधाजनक तरीके से अपने कार्यों/दायित्वों का निर्वाहन कर सकें.

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!