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डोईवाला के किसानों के गन्ने का 7 करोड़ 29 हजार रुपये का हुआ पेमेंट,FRP बढ़ा लेकिन दाम से नाखुश किसान

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देहरादून : उत्तराखंड सरकार ने राज्य में वर्तमान गन्ना पेराई सत्र का पहला भुगतान कर दिया है।

सर्वाधिक भुगतान हुआ डोईवाला के किसानों का :—

डोईवाला गन्ना विकास सहकारी समिति के चेयरमैन मनोज नौटियाल ने

“यूके तेज” को जानकारी देते हुए बताया कि

राज्य सरकार के द्वारा पांच गन्ना विकास सहकारी समितियों

Manoj Nautiyal,Chairman Doiwala Sugarcane Development Cooperative Society,

( डोईवाला,देहरादून,रूड़की,ज्वालापुर और पौंटा साहिब )

का 19 दिसंबर तक का कुल 13 करोड़ 68 लाख रुपये का भुगतान किया गया है

चूंकि डोईवाला समिति अन्य समितियों के मुकाबले

लगभग पचास प्रतिशत गन्ना शुगर मिल को सप्लाई करती है

इसलिए कुल भुगतान का सर्वाधिक 7 करोड़ 29 हजार रुपये डोईवाला को मिला है।

गन्ने के दाम न बढ़ने से किसान नाखुश :—

डोईवाला गन्ना विकास सहकारी समिति के डायरेक्टर कमल अरोड़ा ने

“यूके तेज” से बात करते हुए बताया कि अब तक डोईवाला शुगर मिल के द्वारा

लगभग 12 लाख 15 हजार कुंटल गन्ने की पेराई कर

चीनी की लगभग 1 लाख 20 हजार बोरियां तैयार की गयी हैं।

Kamal Arora,Director,Sugarcane Development Cooperative Society,Doiwala.

सरकार के द्वारा वर्तमान भुगतान 327 रुपये प्रति कुंटल की दर से किया गया है।

पिछले चार वर्षों से किसानों के गन्ने का एक भी रूपया नही बढ़ाया गया है।

जिससे क्षेत्र के किसान नाखुश हैं।

हालांकि केंद्र सरकार के द्वारा गन्ना खरीद की FRP,

10 रुपये बढ़ायी गयी है लेकिन उसका कोई बड़ा लाभ किसानों को नही है।

450 रुपये प्रति कुंतल हो गन्ने का दाम :–

समिति के चेयरमैन मनोज नौटियाल ने कहा कि जब

गन्ना छिलाई का किसान 45 से 50 रुपये दे रहा है

ऐसे में सरकार द्वारा दिये जा रहे मूल्य पर

किसान की लागत भी मुश्किल से निकल पाती है।

इसलिए किसानों की सरकार से मांग है कि

गन्ने का मूल्य 450 रुपये प्रति कुंतल होना चाहिये।

जानिये क्या होता है गन्ने का FRP ?

केंद्र सरकार के द्वारा गन्ने का Fair and Remunerative Price (FRP) घोषित किया जाता है

जिसका मायने है कि केंद्र सरकार द्वारा घोषित गन्ने का एक न्यूनतम मूल्य

जो कि कानूनी रूप से गारंटीड होता है,

यानि इससे नीचे दाम पर गन्ना खरीद नही हो सकती है।

आमतौर पर केंद्र सरकार गन्ने का FRP घोषित करते हुए

शुगर इंडस्ट्री और किसानों की लागत के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करती है।

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