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( पहला केस ) हिन्दू-मुस्लिम की किड़नी अदल-बदल (Kidney Swap) से जॉलीग्रांट-हॉस्पिटल ने बचायी दो जान

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देहरादून :स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय एसआरएचयू के हिमालयन अस्पताल में उत्तराखंड के पहले स्वैप ट्रांसप्लांट कर दो युवकों की जान बचाई गई।

हिमालयन हाॅस्पिटल में किडनी स्वैप ट्रांसप्लांट कर विकांशू व आश मोहम्मद को एक नया जीवन दिया गया।

विकांशु को आश मुहम्मद की माँ रिजवाना की किडनी ट्रांसप्लांट की गयी जबकि आश मुहम्मद को विकांशु के पिता ताहर सिंह की किडनी ट्रांसप्लांट की गयी है

यह प्रदेश का पहला स्वैप ट्रांसप्लांट है।

आश मोहम्मद एक मुस्लिम परिवार से हैं जबकि विकांशू एक हिंदू परिवार से संबंध रखते हैं।

बिजनौर निवासी विकांशु उम्र 21 साल की दोनों किडनियां खराब थी।

लगभग एक साल से विकांशु का लगातार डायलिसिस चल रहा था।

डॉ. विकास चंदेल,नेफ्रोलॉजी विभाग,जॉलीग्रांट हॉस्पिटल,देहरादून

वहीं दूसरे तरफ आश मुहम्मद जिनकी उम्र 34 साल, निवासी मुरादपुर हापुड़ उत्तर प्रदेश से हैं।

आश मोहमम्द भी दोनो किडनियों की खराबी के चलते कई सालों से डायलिसिस करवा रहे थे।

विकांशू व आश मोहम्मद के परिजनों का कहना है कि कई अस्पतालों के चक्कर लगाए बड़े शहरों के चिकित्सकों ने ट्रांसप्लांट के लिए मना कर दिया था।

नेर्फोलाॅजी विभाग के डाॅ. विकास चंदेल ने देखे मरीज :—-

मरीज के परिजनों ने हार नही मानी व रिश्तेदारों की सलाह पर वे हिमालयन अस्पताल में आए यहां पर उन्होंने नेर्फोलाॅजी विभाग में डाॅ. विकास चंदेल को दिखाया।

जिसमें विकांशू की प्राथमिक जांच कर, पाया गया कि विकांशू हेपेटाइटिस से संक्रमित हैं जिसके बाद विकांशू का हेपेटाइटिस का इलाज पूरा किया गया।

दोनों मरीजों के ब्लड ग्रुप परिवार से नही मिल रहे थे :—

डाॅ. विकास चंदेल ने बताया कि विकांशू व आश मोहम्मद का ब्लड गु्रप का अपने परिजनों से मैच नही हो रहा था।

जिसकी वजह स्वैप ट्रांसप्लाट करने की उन्हें सलाह दी गई।

जिसमें पाया गया कि आश मोहम्मद का ब्लड ग्रुप विकांशू के पिता ताहर सिंह साथ मैच हो रहा है, जबकि आश महोम्मद की मां रिजवाना का ब्लड गु्रप विकांशू के साथ मैच हो रहा है।

हुआ स्वैप ट्रांसप्लांट :—

विकांशु को आश मुहम्मद की माँ रिजवाना की किडनी ट्रांसप्लांट की गयी जबकि आश मुहम्मद को विकांशु के पिता ताहर सिंह की किडनी ट्रांसप्लांट की गयी है।

मरीजों को अस्पताल के यूरोलाॅजी विभाग में डाॅ. मनोज विश्वास के पास जरूरी जांच करने को भेजा गया।

जांचे करने के बाद नेर्फोलाॅजी व यूरोलाॅजी की संयुक्त टीम बनाई गई। यूरोलाॅजी व लेफ्रोलाॅजी की संयुक्त टीम ने स्वैप ट्रांसप्लांट को सफल बनाया।

अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डाॅ. एसएल जेठानी ने बताया कि किडनी ट्रांसप्लाट के लिए हिमालयन हाॅस्पिटल उत्तराखंड में विश्व स्तरीय स्वीकृति संस्थान है।

अन्य हाॅस्पिटलों के मुकाबले यहां आधी कीमत पर किडनी ट्रासप्लांट को सफलता पूर्वक किया जाता है।

अब दोनों मरीज पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं व सामान्य जीवन जी रहे हैं।

ट्रांसप्लाट को सफल बनाने में डाॅ. वीना अस्थाना, डाॅ. प्रिया, डाॅ योगेश कालरा, शेर सिंह चैधरी, सुरेश डांगी,

हिमानी, धमेंद्र, बलदेव उनियाल व किडनी ट्रांसप्लांट कोडिनेटर जगदीप का सहयोग रहा।

हिमालयन अस्पताल के यूरोलाॅजिस्ट डाॅ. मनोज विश्वास का कहना है कि शरीर में गुर्दे यानी किडनी का काम हमारे शरीर के मास्टर केमिस्ट व होमियोस्टेटिक अंग होते हैं।

नेर्फोलाॅजिस्ट डाॅ. विकास चंदेल के मुताबिक किडनी ट्रांसप्लांट के बाद जीवन परिवर्तित जीवन शैली, नियमित दवाइयों, खाने-पीने में परहेज, साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखना, संक्रमण आदि से बचाव आदि पर निर्भर करता है।

इसमें इंफेक्शन व रिएक्शन का खतरा हमेशा बना रहता है। इसलिए सतर्क रहने की जरूरत रहती है।

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