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मंत्रियों द्वारा अफसरों की एसीआर लिखने की पुरानी परिपाटी हो लागू : सतपाल महाराज

Cabinet Minister Satpal Maharaj demanded the old practice of ministers to write annual confidential report of officers.

>एनडी तिवारी सरकार में था ACR लिखने का अधिकार

>विकास कार्यों में आ पाएगी इससे अधिक पारदर्शिता

>भ्रष्टाचार दूर होने के साथ ही होगा गुणवत्तापूर्ण कार्य

Dehradun : प्रदेश में मंत्रियों की ओर से अपने अधीनस्थ विभागीय सचिवों की एसीआर वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट लिखने के मामले में प्रदेश के लोक निर्माण, सिंचाई, पंचायती राज, ग्रामीण निर्माण, जलागम, धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने कहा है कि राज्य की अधिकांश जनता चाहती है कि अन्य राज्यों की भांति यहां भी मंत्रियों को अधिकारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट पर अपना मंतव्य अंकित करने का अधिकार मिले ताकि विकास कार्यों में पारदर्शिता के साथ साथ सही प्रकार से विभागों की समीक्षा की जा सके।

कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने मंगलवार को जारी अपने एक बयान में कहा कि जब अन्य राज्यों में मंत्रियों को अधिकारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट पर अपना मंतव्य अंकित करने का अधिकार है और उत्तराखंड में भी पूर्वर्ती एनडी तिवारी सरकार में मंत्रियों को अधिकारियों की एसीआर लिखने का अधिकार था तो इस परिपाटी को पुनः लागू करने में किसी को क्या परेशानी हो सकती है।

श्री महाराज ने कहा कि हमने पंचायती राज विभाग में ब्लाक प्रमुख को खंड विकास अधिकारी की और जिला पंचायत अध्यक्ष को सीडीओ की एसीआर लिखने के पूर्व में हुए शासनादेश को भी पुनः लागू किया ताकि पंचायतों में होने वाले विकास कार्य में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने के साथ-साथ गुणवत्ता युक्त कार्य किए जा सकें।

इसलिए मेरा कहना है कि जो परिपाटी पूर्व में रही है उसे लागू करने में संकोच नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह तो निर्विवाद है कि मंत्री विभाग का मुखिया होता है इसलिए उसका मंतव्य अंकित होना आवश्यक है।

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रजनीश प्रताप सिंह तेज

अगर मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव का मंतव्य अंकित हो रहा है तो मंत्री का भी अंकित होना चाहिए। यह सही है कि इस व्यवस्था में मुख्यमंत्री एक्सेप्टिंग अथॉरिटी हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मंत्री अपना मंतव्य अंकित नहीं कर सकता।

श्री महाराज ने उदाहरण देते हुए कहा कि जब कोई मुकदमा चलता है तो लोअर कोर्ट, सेशन कोर्ट और हाई कोर्ट इन सब का मंतव्य उसमें आता है बाद में सुप्रीम कोर्ट चाहे जो भी निर्णय ले। इसलिए मेरा कहना है की व्यवस्था की जो एक कड़ी बनी है वह टूटनी नहीं चाहिए।

उन्होने कहा कि हाल ही में कैबिनेट बैठक के बाद हुई बैठक में जब सभी मंत्री इस पर अपनी सहमति व्यक्त कर चुके हैं तो इस व्यवस्था को लागू करने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। यह कोई नई बात नहीं कही जा रही है। यह तो व्यवस्था का एक हिस्सा है।

एसीआर लिखने का यह आशय बिल्कुल नहीं है कि मंत्री अपने अधीनस्थ अधिकारी के विरुद्ध ही कुछ लिखेगा, जो अधिकारी अच्छा काम करेंगे उनके चरित्र प्रविष्टि पर अच्छा ही अंकित किया जाएगा।

इसलिए जब सचिव अपने से नीचे के अधिकारियों की एसीआर लिख सकता है तो विभागीय मंत्री उस विभाग का मुखिया होने के नाते अपने नीचे काम कर रहे सचिव की एसीआर क्यों नहीं लिख सकता ?

अन्य प्रदेशों में मंत्रियों को अपना मंतव्य अंकित करने का अधिकार है। यहां अधिकारियों की एसीआर लिखने के मामले में इसकी व्यावहारिकता की बात करने वालों को इस बारे में मनन करना चाहिए कि हमारे यहां यह व्यवस्था न होने से हम हास्य का पात्र बने हैं।

 

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