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जान बचाने को ‘सीपीआर’ है महत्वपूर्ण,हिमालयन हॉस्पिटल में ‘पुतलों’ के माध्यम से सिखायी गयी तकनीक

मानव जीवन अमूल्य है इसे संजोय और सहेजकर रखने को मनुष्य हर प्रकार से यत्न-प्रयत्न करता है लेकिन मृत्यु शास्वत सत्य है लेकिन फिर भी कुछ मामलों में सीपीआर तकनीक जीवदायिनी है.
> 50 % मौत समय से हॉस्पिटल न पहुंचने से
> हर किसी को आनी चाहिए ‘सीपीआर तकनीक’
> हिमालयन हॉस्पिटल ने की सीपीआर पर कार्यशाला
> सीपीआर मतलब कॉर्डियो पल्मोनरी रिससिएशन
>प्रभावित व्यक्ति का बचाया जा सकता है जीवन
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रजनीश प्रताप सिंह ‘तेज’

देहरादून : हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट में कॉर्डियो पल्मोनरी रिससिएशन (सीपीआर) पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें अस्पताल के कर्मचारियों को आपात स्थिति में सीपीआर देने की तकनीक व इसके महत्व के विषय में जानकारी दी गयी।

बुधवार को हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट के ऐनेस्थिसिया विभाग की ओर से आयोजित आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुये डॉ. वीना अस्थाना ने कहा कि कॉर्डियो पल्मोनरी रिससिएशन (सीपीआर) तकनीक के प्रयोग से किसी व्यक्ति की सांस व दिल की धड़कन अचानक रुक जाने पर उसे बचाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि (सीपीआर) तकनीक का ज्ञान मेडिकल के छात्रों के साथ नॉन क्लिीनिकल छात्रों को भी होना चाहिए, जिससे की जरूरत पड़ने पर किसी का जीवन बचाया जा सके।

उन्होंने कहा कि देश में हर साल लाखों लोगों की दिल की बीमारी की वजह से मौत हो जाती है। इनमें से पचास फीसदी लोगों की मौत वक्त पर अस्पताल न पहुंच पाने की वजह से होती है।

ऐसे में सीपीआर तकनीक किसी जीवनदायिनी से कम नहीं। डॉ. पारुल ने कहा अगर किसी शख्स को दिल का दौरा पड़ा है तो उसकी जीवन की रक्षा के लिए शुरुआती कुछ मिनट बेहद अहम होते है। ऐसे में सीपीआर तकनीक का इस्तेमाल कर प्रभावित व्यक्ति का जीवन बचाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि अधिक से अधिक लोगों को इस जीवनदायी तकनीक का प्रशिक्षण लेना चाहिए। क्योंकि आपातकालीन स्थिति से सामना कहीं भी और कभी भी हो सकता है।

कार्यशाला में प्रतिभागियों ने पुतलों पर सीपीआर देने का अभ्यास किया और वीडियो के माध्यम से सीपीआर की तकनीक को समझा।

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