
Dehradun : वन विभाग ने की कार्रवाई
डोईवाला के फारेस्ट रेंज ऑफिसर,लच्छीवाला घनानंद उनियाल ने बताया कि,” माननीय उच्च न्यायालय के आदेशानुसार वनक्षेत्र से अतिक्रमण हटाने के आदेश के क्रम में डोईवाला के बनबाह -१ आरक्षित वन से वन गूजरों द्वारा किए गये अतिक्रमण को हटाया गया ,
लगभग १०=०० हेक्टेयर वनक्षेत्र
लगभग 125 बीघा ज़मीन अतिक्रमण अतिक्रमण से मुक्त किया गया.
आगे भी वन भूमि से अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही गतिमान है
यूके तेज स्पष्टीकरण
आपको यह भी स्पष्ट कर दिया जाये कि वन विभाग ने पूर्व में अनुमति प्राप्त जमीन से गुज्जरों को नही हटाया है
बल्कि विभाग के अनुसार अनुमति से अधिक जमीन से अतिक्रमण को हटाया गया है
आइये अब वन गुर्जर का क्या कहना है वह भी जानते हैं
यूके तेज से बात करते हुये वन गुर्जर शब्बीर अहमद ने कहा कि
• हम लोग ब्रिटिश काल से कांसरों वन रेंज में रहते आ रहे हैं
(पूर्व में लच्छीवाला रेंज नही थी बल्कि कांसरो रेंज थी )
• वर्ष 1983 में राजाजी नेशनल पार्क बनने के बाद यहां से वन गुर्जरों को हटा दिया गया
जिन्हें गैंडीखाता गुर्जर बस्ती और पथरी गुर्जर बस्ती में शिफ्ट किया गया
• जबकि 3 परिवारों को लच्छीवाला फारेस्ट रेंज की खैरी बनबाह-1 में बसाया गया
→ईशा पुत्र शुक्रदीन
→युसूफ पुत्र अलीशेर
→ नूर मुहम्मद पुत्र सरदार मुहम्मद
• 1975-76 में गुर्जर बसाये गये जिन्हें मकान के लिये और मवेशियों के लिये बोने-खाने की जमीन दी गयी
वेब मीडिया के विश्वसनीय नाम
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रजनीश प्रताप सिंह तेज
क्या कहना है शब्बीर अहमद का
पहली आपत्ति
• बीते रोज वन विभाग के द्वारा बिना पूर्व नोटिस या इत्तिला के कार्रवाई की गयी
दूसरी आपत्ति
• जबकि कानूनन 60 A 1 के तहत नोटिस दिया जाना था
जिसमें 10 दिन के भीतर प्रभागीय वन अधिकारी DFO के समक्ष अपील का समय दिया जाता
तीसरी आपत्ति
वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत 2005 से पहले की जिस जमीन पर हम रह रहे थे
उस पर हमारा हक बनता है इसे अतिक्रमण नही कहा जा सकता है
इसलिए इसको हटाना गलत है
बीते रोज की कार्रवाई से 50 स्त्री,पुरुष और बच्चे प्रभावित हुये हैं इसके साथ ही उनसे जुड़े लगभग 550 से 600 मवेशी जिनमें गाय-भैंस और बकरी शामिल है
एक नजर वन अधिकार अधिनियम 2006 पर
वर्ष 2006 में अधिनियमित FRA वन में निवास करने वाले आदिवासी समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन संसाधनों के अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है
यह वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों (FDST) और अन्य पारंपरिक वनवासी (OTFD) जो पीढ़ियों से ऐसे जंगलों में निवास कर रहे हैं, को वन भूमि पर उनके वन अधिकारों को मान्यता देता है
स्वामित्व अधिकार:
यह FDST और OTFD को अधिकतम 4 हेक्टेयर भू-क्षेत्र पर आदिवासियों या वनवासियों द्वारा खेती की जाने वाली भूमि पर स्वामित्व का अधिकार देता है।
यह स्वामित्व केवल उस भूमि के लिये है जिस पर वास्तव में संबंधित परिवार द्वारा खेती की जा रही है, इसके अलावा कोई और नई भूमि प्रदान नहीं की जाएगी