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देहरादून: डोईवाला विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर
एसआरएचयू हिमालयन हाॅस्पिटल के वरिष्ठ न्यूरोलाॅजिस्ट डाॅ. दीपक गोयल
ने कहा कि आत्महत्या एक विकृत त्रासदी है।
कोरोना संक्रमण काल के दौरान आत्महत्या की दर तीस प्रतिशत तक बढ़ी है ।
विशेषकर महिलाओं और किशोरियों में यह आंकड़ा पचास प्रतिशत तक पहुंच गया है ।
भारतीय जनगणनाएवं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी ) के अनुसार वर्ष 2019 में प्रतिदिन औसतन 381 आत्महया के आंकड़े सामने आये हैंऔर 2020 तक इन आंकड़ों में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है ।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2019 में त्रिपुरा में 728,
हिमाचल प्रदेश 584 एवं उत्तराखंड में 516 आत्महत्या के मामले दर्ज हुए है।
ये आंकड़े उत्तराखडं को आत्महत्या के मामले में तीसरे स्थान पर रखते हैं ।
डाॅ. दीपक गोयल ने बताया आत्महत्या के तरीकों के आकलन पर ये पाया गया है सबसे ज्यादा फांसी
(सभी आत्महत्याओं का 10 से 72 प्रतिशत), दूसरे नंबर पर जहर (सभी आत्महत्याओं का 16 से 49 प्रतिशत) जिसमें की अक्सर ऑर्गोफॉस्फेटकीटनाशकों के प्रयोग किया जाता है एवं तीसरे नंबर पर 3 से 39 प्रतिशत तक डूबनेऔर जलने के के तरीकों का प्रयोग किया गया है ।
आत्महत्या के अन्य सूचित तरीकों में ऊंचाइयों से कूदना (सभी आत्महत्याओं का 0.5 से 2 प्रतिशत),
ट्रेन के नीचे आना (सभी आत्महत्याओं का 6 से 13 प्रतिशत) और बन्दूक(सभी आत्महत्याओं का 3 प्रतिशत) का उपयोग करना शामिल है। किसी व्यक्ति के मन में आने वाले आत्महत्या के विचारों को पहचानना कोई आसान काम नहीं है।
बावजूद इसके किसी व्यक्ति भी के मन में आने वाले आत्महत्या के विचार और हमें इन्हें संभावित आत्महत्या की चेतावनी के रूप लेना चाहिए। किसी न किसी संकेत के रूप में हमारे सामने होते हैं
आत्महत्या के सांकेतिक लक्ष्ण:
आाशाहीन, निराशाजनक एवं अकेलेपन की बातें करना, कहना की उनके पास जीवित
रहने का कोई कारण नहीं है या समस्याओं से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है,
अपनी वसीयत बनाना या व्यक्तिगत संपत्ति, वस्तुओं को किसी को दे देना,
खुद को नुकसान पहुंचाने के साधनों की खोज करना, बहुत अधिक या बहुत कम सोना,
कम खाना या बहुत अधिक खाना, अत्यधिक शराब या नशीली दवाओं के सेवन
सहित लापरवाही बरतना, सामाजिक संपर्क से बचना, क्रोध या बदला लेने के इरादे को व्यक्त करना,
अत्यधिक चिंता या व्याकुलता दर्शाना, मूड में नाटकियता रहना, दोस्तों और
परिवार को अलविदा इत्यादि शब्द कहना, मरने की इच्छा व्यक्त करना,
बहुत ज्यादा अपराधबोध और शर्म महसूस करना।
साइकोलोजिस्ट डाॅ. मालिनी श्रीवस्तव ने बताया कि जिस व्यक्ति में
आत्महत्या करने जैसे विचार आये तो इसमें बिना देरी किये मनोचिकित्सक की मदद लेनी चाहिए।
जिससे उसकी मानसिक स्थिति को जान कर उपचार किया जा सके।
इन बातों को रखे ध्यान
1- व्यक्ति की बात का ध्यान से सुनें।
2- समस्या को हल करने की कोशिश न करें,उस व्यक्ति जिसके अंदर आत्महत्या के कोई संकेत दिखाई दे रहे हैउसकी की बात सुनें और आवश्यक सहानुभूति व्यक्त करने का प्रयास करें।
3- व्यक्ति से उन भावनाओं और व्यवहार के बारे में खुलकर बात करें जिन्हें आपने आत्महत्या के अलार्म के रूप में देखा है, व्यक्ति से सीधे आत्महत्या के बारे में बात करनी चाहिये। आत्महत्या शब्द का उपयोग करना चाहिए ।ध्यान दें की संभावित व्यक्ति से सीधे आत्महत्या के बारे में पूछना
उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित नहीं करता , बल्कि ऐसा करना संभावित व्यक्ति से जोड़ता है।
4- यदि संभावित व्यक्ति आत्महत्या के विचार व्यक्त करना शुरू कर देता है,तो तुरंत पेशेवर की मदद लेने में संकोच न करे।
5- बंदूक, चाकू आदि घातक हथियार छुपा कर रखें, दवाइयों को पहुँच से दूर रखें,
रसोई के बर्तनों के स्थान के साथ-साथ रस्सियों के बारे में भी जागरूक रहें,
जिनका इस्तेमाल आत्महत्या करने के लिए किया जा सकता है।
6- व्यक्ति की किसी ऐसी योजना या आत्महत्या के बारे में विचार के बारे में पुष्टि होती है,
तो घबराए बिना व्यक्ति को चिकित्सीय आपातकालीन सहायता के लिए ले जाएं।
इस तरह की स्थितियों को मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सक बेहतर नियंत्रित कर सकते है।
7- अगर आपको लगता है कि संभावित व्यक्ति के ऊपर से तत्काल संकट बीत चुका है,
तो भी तुरंत पेशेवर की मदद लें, क्योंकि आत्महत्या के व्यवहार का खतरा तब तक बना रहता है
जब तक कि समस्याओं से निपटने और मुकाबला करने के लिए संभावित व्यक्ति पूरी तरह से तैयार नहीं हो जाता है ।
8- वैज्ञानिक शोधों ने समर्थन किया है कि योग आसन (आसन), गहरी साँस लेने की तकनीक (प्राणायाम) को
यदि दैनिक रूप से दो बार अभ्यास किया जाता है, तो विचार प्रक्रिया को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।
9) ताजा और स्वस्थ भोजन के माध्यम से पोषण का समर्थन मस्तिष्क को
बेहतर तरीके से काम करने में मदद कर सकता है और अवसादग्रस्तता
और तनाव हार्मोन को कम कर सकता है।
10) स्व-परावर्तन तकनीक और स्व-अध्ययन भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को
प्रबंधित करने और मन की अस्पस्टता को दूर करने के लिए एक सहायक
उपकरण के रूप में मददगार हो सकता है।