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(प्रियंका सैनी)
देहरादून : एम्स संस्थान उत्तराखंड का पहला प्लाज्मा डोनेट सेंटर बन गया है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान,एम्स ऋषिकेश में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा थेरेपी विधिवत शुरू हो गई है।
इस थेरेपी के शुरू होने से कोविड-19 को पराजित कर चुके मरीज अन्य कोविड संक्रमितों की
जीवन रक्षा में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
एम्स संस्थान में बीते सोमवार को कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा का सफलतापूर्वक आधान किया गया।
उत्तराखंड राज्य में यह थेरेपी पहली बार शुरू हुई है,
साथ ही उत्तराखंड राज्य में एम्स ऋषिकेश इस प्रक्रिया को शुरू करने में आगे रहा है।
कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा उन रक्तदाताओं से एकत्रित किया जाता है, जो कि
कोविड19 संक्रमण से ठीक हो चुके हों और जिनमें उपचार के बाद
भविष्य में वायरस की उपस्थिति नगण्य हो।
यह केवल विशिष्टरूप से उन स्वस्थ हो चुके लोगों से एकत्रित किया जाता है,
जो रक्तदान के लिए योग्य हों।
एक मरीज से किया गया यह एकत्रीकरण दो मरीजों को लाभ दे सकता है।
एम्स ऋषिकेश में इसके लिए प्रक्रिया विधिवत आरंभ कर दी गई है।
निदेशक एम्स पद्मश्री प्रो. रवि कांत ने बताया कि पहले से संक्रमित होकर
स्वस्थ हुए व्यक्ति में निर्मित एंटीबॉडी, एक रोगी में सक्रिय वायरस को बेअसर कर देगा,
साथ ही उसकी रिकवरी में तेजी लाने में मदद करेगा।
एम्स निदेशक प्रो. रवि कांत ने कोविड-19 संक्रमण से उबरने वाले लोगों से आह्वान किया
कि जिन एंटीबॉडीज ने आपको कोविड -19 से जीतने में मदद की,
अब दान किए गए प्लाज्मा से मिलने वाले एंटीबॉडी से गंभीर बीमारी वाले रोगियों की मदद की जाएगी।
उन्होंने कहा कि आप लोग सिर्फ प्लाज्मा डोनर ही नहीं हैं,
बल्कि “लाइफ डोनर” हैं।
इस प्रक्रिया में पहले से संक्रमित होकर स्वस्थ हुए व्यक्ति का पूरा रक्त प्लाज्मा
तथा अन्य घटक एफेरेसिस मशीन द्वारा अलग किया जाता है।
प्लाज़्मा (एंटीबॉडी युक्त) को कॉनवेल्सेंट प्लाज़्मा के रूप में एकत्रित किया जाता है
और अन्य लाल रक्त कोशिकाएं, श्वेत रक्त कोशिकाएं और प्लेटलेट्स जैसे अन्य घटक प्रक्रिया
के दौरान रक्तदाता में वापस आ जाते हैं।
इस प्रक्रिया द्वारा प्लाज्मा दान करना दाता प्लाज्मा डोनर के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है,
उन्होंने बताया कि इससे उसके स्वास्थ्य पर किसी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव अथवा बुरा असर नहीं पड़ता है।