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Gurdwara Darbar Sahib Kartarpur :आज से श्रद्धालु जा सकेंगे पाकिस्तान के करतारपुर साहिब गुरुद्वारा

 Gurdwara Darbar Sahib Kartarpur

पाकिस्तान में स्थित सिखों के सबसे पूजनीय तीर्थस्थलों में से एक

करतारपुर साहिब गलियारे को आज से एक बार फिर से खोला जा रहा है। 

19 नवंबर को गुरुनानक देव की जयंती है, जिसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है।

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Priyanka Pratap Singh

New Delhi :

Gurdwara Darbar Sahib Kartarpur

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था उद्घाटन

नवंबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करतारपुर साहिब गलियारे का उद्घाटन किया था।

भारत के करीब 100-200 श्रद्धालु करतारपुर साहिब कॉरिडोर से पाकिस्तान पहुंच सकते हैं।

कहाँ है करतारपुर (Kartarpur)

पाकिस्तान के नारोवाल जिले में बसा करतारपुर पाकिस्तान स्थित पंजाब में आता है।

यह जगह लाहौर से 120 किलोमीटर दूर है।

जहां पर आज गुरुद्वारा है वहीं पर 22 सितंबर 1539 को गुरुनानक देवजी ने आखिरी सांस ली।

यह गुरुद्वारा रावी नदी के करीब स्थित है और डेरा साहिब रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी चार किलोमीटर है।

यह गुरुद्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर है।

श्राइन भारत की तरफ से साफ नजर आती है।

Gurdwara Darbar Sahib Kartarpur

क्या हुआ समझौता

भारत ने 24 अक्टूबर, 2019 को पाकिस्तान के साथ करतारपुर गलियारा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

समझौते के अनुसार सभी धर्मों के भारतीय तीर्थयात्रियों को 4.5 किलोमीटर लंबे मार्ग के माध्यम

से साल भर वीजा मुक्त यात्रा करने की अनुमति दी गई थी

श्रद्धालुओं को करना होगा कोविड नियमो का पालन

दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को कोविड नियमो का पालन करना अनिवार्य होगा

करतारपुर साहिब कॉरिडोर पर श्रद्धालुओं को तापमान चेक करवाने के साथ ही

सैनिटाइजेशन प्रक्रिया से गुजरना होगा।

 मास्क लगाना और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान भी देना होगा।

सभी श्रद्धालुओं को अपने साथ निगेटिव आरटी-पीसीआर रिपोर्ट रखना होगा,

जो 72 घंटे से ज्यादा पुरानी नहीं होनी चाहिए।

कोरोना वैक्सीनेशन का सर्टिफिकेट भी अनिवार्य है

क्या है मान्यता

जब नानक जी ने अपनी आखिरी सांस ली तो उनका शरीर अपने आप गायब हो गया

और उस जगह कुछ फूल रह गए।

इन फूलों में से आधे फूल सिखों ने अपने पास रखे और

उन्होंने हिंदू रीति रिवाजों से गुरु नानक जी का अंतिम संस्कार किया

और करतारपुर के गुरुद्वारा दरबार साहिब में नानक जी की समाधि बनाई।

वहीं, आधे फूलों को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुस्लिम भक्त अपने साथ ले गए

और उन्होंने गुरुद्वारा दरबार साहिब के बाहर आंगन में मुस्लिम रीति रिवाज के मुताबिक कब्र बनाई।

गुरु नानक जी ने इसी स्थान पर अपनी रचनाओं और उपदेशों को पन्नों पर लिख

अगले गुरु यानी अपने शिष्य भाई लहना के हाथों सौंप दिया था।

यही शिष्य बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए।

इन्हीं पन्नों पर सभी गुरुओं की रचनाएं जुड़ती गई और दस गुरुओं के बाद

इन्हीं पन्नों को गुरु ग्रन्थ साहिब (Gur Granth Sahib) नाम दिया गया,

जिसे सिख धर्म का प्रमुख धर्मग्रंथ माना गया।

गुरु नानक देव ने बिताए जीवन के अंतिम वर्ष

करतारपुर साहिब गुरुद्वारा जिसे मूल रूप से गुरुद्वारा दरबार साहिब के नाम से जाना जाता है,

सिखों का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है,

जहां गुरु नानक देव ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष बिताए।

इस स्थान पर गुरु नानक जी ने 16 सालों तक अपना जीवन व्यतीत किया।

बाद में इसी गुरुद्वारे की जगह पर गुरु नानक देव जी ने अपना देह 22 सितंबर 1539 को छोड़ा था,

जिसके बाद गुरुद्वारा दरबार साहिब बनवाया गया। 

पाकिस्तान सरकार ने कराई मरम्मत

ऐसा माना जाता है कि 1995 में पाकिस्तान की सरकार ने इसकी मरम्मत कराई थी।

और साल 2004 में यह काम पूरा हो सका।

हालांकि इसके करीब स्थित रावी नदी इसकी देखभाल में कई मुश्किलें भी पैदा करती है।

साल 2000 में पाकिस्तान ने भारत से आने वाले सिख श्रद्धालुओं को बॉर्डर पर

एक पुल बनाकर वीजा फ्री एंट्री देने का फैसला किया था। 

 

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