उत्तराखंड के प्रथम शहीद की अनदेखी क्यूं ? जॉलीग्रांट एयरपोर्ट को लेकर शहीद दुर्गामल्ल की 96 वर्षीय बहन ने मुख्यमंत्री धामी को लिखी चिठ्ठी

>मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर उठायी मांग
>प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सांसद निशंक को भेजी प्रतिलिपि
>आरटीआई एक्टिविस्ट सुरेंद्र थापा हैं मुद्दे पर सक्रीय भूमिका में
आजाद हिंद फौज के मेजर रहे शहीद दुर्गामल्ल की बहन श्यामा देवी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को एक पत्र लिखकर शहीद दुर्गामल्ल की यादों को संजोए रखने के लिए उनके सम्मान में जौलीग्रांट एयरपोर्ट का नाम “मेजर शहीद दुर्गामल्ल एयरपोर्ट” रखने के लिए कहा है
हिमाचल प्रदेश में रहती हैं श्यामा देवी मल्ल
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लिखे पत्र में श्यामा देवीमल्ल ने कहा है कि मैं अपने बेटे हरीश चंद्र ठाकुर, महेश चंद्र ठाकुर और बहु-पोतों के साथ हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निवास कर रही हूं.
आज मेरी उम्र लगभग 96 वर्ष हो गई है और शारीरिक रूप से अस्वस्थ और कमजोर हूं मेजर अमर शहीद दुर्गामल्ल जी मेरे बड़े भाई थे देश को आजाद कराने में उनके द्वारा दिए गए बलिदान को कोई नहीं भुला सकता है मैं उस इतिहास की जीती जागती गवाह हूँ.
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रजनीश प्रताप सिंह तेज
देहरादून : बूढ़ी आंखों में आज भी घूमता है वो नजारा
श्यामा देवी मल्ल ने पत्र में लिखा है कि मेरी इन बूढ़ी आंखों में आज भी वह दृश्य नजर आता है वह समय याद आता है जब मेरे बड़े भाई दुर्गामल्ल जी की शादी मेरी भाभी शारदा जी से हुई थी.
हमारा पूरा परिवार खुशी से झूम रहा था भाई की शादी के अभी 3 दिन भी नहीं हुए थे कि अचानक आजाद हिंद फौज से बुलावा आ गया.
भाई दुर्गामल्ल जी ने भारत मां को अंग्रेजों की कैद से जल्द से जल्द मुक्त कराने के लिए अपनी खुशी, अपने परिवार की खुशियों का बलिदान देते हुए अपनी नई-नई शादी और नई नवेली दुल्हन को छोड़कर अपने कर्तव्य को निभाने के लिए आजाद हिंद फौज में वापस चले गए.
और जब अंग्रेजों की कैद में हुई शहीद दुर्गामल्ल से मुलाकात
श्यामा देवी ने मुख्यमंत्री धामी को लिखे पत्र में जिक्र किया है कि 27 मार्च 1944 को मेरे बड़े भाई दुर्गामल्ल जी को शत्रु के शिविरों के बारे में सूचनाएं एकत्र करने भेजा गया था.
तभी शत्रु पक्ष के सैनिकों ने उन्हें मणिपुर में कोहिमा के निकट उखरुल में पकड़ लिया.
ब्रिटिश अधिकारियों ने मेरे बड़े भाई मेजर दुर्गामल्ल जी को इस बात के लिए राजी करने की कोशिश की कि वह गलती स्वीकार कर ले और उनसे वादा किया कि यदि वह ऐसा करें तो उन्हें माफी दे दी जाएगी.
पर ऐसा करने से मेरे बड़े भाई दुर्गामल्ल जी की इच्छाओं के विरुद्ध था उनका तो एकमात्र उद्देश्य अपने देश को आजाद कराना था उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों के प्रस्ताव को स्वीकार करने की बजाय फांसी के फंदे को गले लगाना उचित समझा
जब अंग्रेजों ने अपनाया अलग तरीका
जब अधिकारियों के सभी प्रयास विफल हो गए तो उन्होंने आखिरी कोशिश की और मेरी भाभी की नई-नई ब्याहता पत्नी श्रीमती शारदा देवी को दिल्ली बुलाया था.
अपनी भाभी के साथ में भी दिल्ली गई थी.
मेरी भाभी श्रीमती शारदा देवी को कैदखाने में मेरे भाई दुर्गामल्ल के सामने ले जाया गया था.
ब्रिटिश अधिकारियों की यह सोच थी कि उनकी पत्नी अपने पति दुर्गामल्ल को माफी मांगने के लिए तैयार कर लेगी पर मेरे भाई मेजर दुर्गामल्ल की सच्ची देशभक्ति के सामने अंग्रेजों की हर चाल विफल हो गई.
बल्कि मेरे बड़े भाई मेजर दुर्गामल्ल जी ने अपनी पत्नी शारदा देवी को अंतिम बार यह कहकर वापस घर वापस भेज दिया,” शारदा,मैं अपना जीवन अपने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए त्याग कर रहा हूं ,तुम्हें चिंतित और दुखी नहीं होना चाहिए.
मेरे शहीद होने के बाद करोड़ों हिंदुस्तानी तुम्हारे साथ होंगे मेरा बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा भारत आजाद होगा अब यह थोड़े समय की बात है”.
भाई दुर्गामल्ल देश को आजाद कराने के लिए निर्भीक होकर और हंसते-हंसते फांसी के फंदे को गला लगाने को तैयार हो गए थे.
उसके बाद हम लोग घर आ गए
31 बरस की उम्र में शहादत
15 अगस्त 1944 को मेरे देशभक्त भाई दुर्गामल्ल को लाल किले से दिल्ली सेंट्रल जेल लाया गया और उसके ठीक 10 दिन बाद 25 अगस्त 1944 को उन्हें फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया गया.
जब मेरे भाई देश को आजादी दिलाने के लिए फांसी चढ़े तो उनकी उम्र केवल 31 साल थी.
मुख्यमंत्री से की भावुक अपील
श्यामा देवी ने पत्र में लिखा है कि जिस दिन शहीद दुर्गामल्ल को फांसी दी गई उस दिन हमारे परिवार से देश को आजाद कराने के लिए सिर्फ मेरे भाई दुर्गामल्ल ने ही बलिदान नहीं दिया था बल्कि उनके साथ-साथ मेरी भाभी शारदा देवी (जिनके हाथों की मेहंदी अभी ढंग से सुखी भी नहीं थी) ने भी अपने सुहाग अपनी खुशी अपने भविष्य को भी जीते जी बलिदान दे दिया था.
मेरे बूढ़े मां बाप ने अपने जवान बेटे और अपने हमने अपने जवान भाई का इस दुनिया से जाने का दुख झेला था.
मगर हमारे पूरे परिवार को इस बात का गर्व है और हमेशा रहेगा की एक बेटे ने एक भाई ने एक पति ने अपनी भारत मां को अंग्रेजों के कैद से आजाद कराने के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था.
आरटीआई एक्टिविस्ट सुरेंद्र सिंह थापा से मिली जानकारी
श्यामा देवी ने पत्र में उल्लेख किया है कि देहरादून के रहने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई क्लब उत्तराखंड के संगठन सचिव सुरेंद्र सिंह थापा के द्वारा ज्ञात हुआ कि जौलीग्रांट एयरपोर्ट का नाम परिवर्तन किया जा रहा है.
आखिर उत्तराखंड के प्रथम शहीद की उपेक्षा क्यूं ?
इस विषय में मेरा यह कहना है कि जौलीग्रांट एयरपोर्ट डोईवाला क्षेत्र में ही आता है और मेरे भाई दुर्गा बल का जन्म वहीं पर हुआ है.
बचपन भी वही बीता है स्कूली शिक्षा भी वहीं से प्रारंभ हुई है.
देशभक्ति प्रेरणा भी उसी क्षेत्र में बड़े होकर मिली थी और यह वही जगह है जहां उन्होंने अपनी नई नवेली दुल्हन को छोड़कर देश को आजादी दिलाने के लिए आखिरी बार यही से इनके कदम निकले थे.
वह देहरादून उत्तराखंड के प्रथम नागरिक हैं जिन्हें आजाद हिंद फौज में रहते हुए देश के लिए बलिदान होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
जानकारों से यह भी मालूम हुआ कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार द्वारा आज तक मेरे बड़े भाई मेजर शहीद दुर्गामल्ल जी की यादों को जिंदा रखने एवं उनके सम्मान में उनके नाम से ना तो किसी संस्थान या स्थानों के नाम रखे गए हैं ना ही उनके नाम से कोई योजना चलाई जा रही है जो बहुत ही आश्चर्य एवं दुख का कारण है और सोचने को मजबूर कर रहा है कि आखिर एक महान देशभक्त और उत्तराखंड का लाल ,आजाद हिंद फौज में उत्तराखंड के प्रथम शहीद की ऐसी अनदेखी क्यूं ?
“मेजर शहीद दुर्गामल्ल एयरपोर्ट” रखा जाये नाम
अतः आपसे निवेदन है कि मेरे बड़े भाई मेजर शहीद दुर्गामल्ल के बलिदान को वास्तविक सम्मान दिलवाने एवं उनकी यादों को युगों-युगों तक संजोए रखने के लिए दून जौली ग्रांट एयरपोर्ट का नाम मेजर शहीद दुर्गामल्ल एयरपोर्ट रखने का कष्ट करें
उत्तराखंड राज्य सरकार द्वारा यदि मेरे बड़े भाई और उत्तराखंड के लाल ,देश के महान सपूत के सम्मान में जौलीग्रांट एयरपोर्ट का नाम मेजर शहीद दुर्गामल्ल एयरपोर्ट रखा जाता है तो उत्तराखंड सरकार की तरफ से यह सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी हमारा पूरा परिवार उत्तराखंड सरकार का आभारी रहेगा