कुमार विश्वास सहित तमाम कवियों ने स्वामी विवेकानंद की जयंती पर सीएम हाउस में बांधा समा
सटीक और विश्वसनीय न्यूज़ के लिए
“यूके तेज” से जुड़ें
व्हाट्सप्प करे 8077062107
देहरादून : स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर पर जनता दर्शन हॉल,
मुख्यमंत्री आवास में आयोजित ‘राष्ट्रभक्ति कवि सम्मेलन’ में कवि डा. कुमार विश्वास,
सुश्री कविता तिवारी, श्री राजीव राज, रमेश मुस्कान और
तेजनारायण शर्मा ‘बेचैन’ ने अपनी कविताओं से समां बांध दिया।
कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सीमित संख्या में आमंत्रित किए गए
लोगों के बीच राष्ट्र, संस्कृति, सेना की वीरता,
मातृ शक्ति सहित विभिन्न विषयों पर काव्य प्रस्तुतियां की गईं।
आप वीडियो देखें :—
डा. कुमार विश्वास ने अपने अंदाज में कवि सम्मेलन को
संचालित कर लोगों को कवि सम्मेलन में सहभागी बनाया।
राष्ट्रभक्ति, देश के लिए बलिदान की भावना, भारतीय संस्कृति के महत्व पर प्रस्तुत की गई
कविताओं पर सभागार दर्शकों की तालियों से गूंजता रहा।
कार्यक्रम में अतिथि कवियों का स्वागत करते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि
स्वामी विवकानंद जी हम सभी के आदर्श हैं।
उन्होंने पूरी दुनियां में भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता का परचम लहराया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति उस छाते की तरह है
जिसके नीचे सभी दर्शन, विचार, मत, सम्प्रदाय खुली सांस के साथ आश्रय लेते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि कवि मुक्त होते हैं, उन्हें मुक्त होना भी चाहिए।
जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि।
हमारा दायित्व है कि उनकी कविताओं की गहराईयों को समझें।
वैक्सीनेशन भी शुरू किया जा रहा है।
आशा है कि हम जल्द ही कोरोना से पूरी तरह से मुक्त होंगे और बड़े स्तर पर इस तरह का आयेजन करेंगे।
इससे पहले डा. कुमार विश्वास ने
‘है नमन उनको जो इस देह को अमरत्व देकर, इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो
गए.है
नमन उनको जिनके सामने बौना हिमालय, जो धरातल पर गिर पड़े,
आसमानी हो गए’’ कविता से शहीदों को नमन किया।
डा. विश्वास ने गंगा पर भी कविता सुनाई जो उन्होंने उत्तराखण्ड में ही लिखी थी।
‘खिलौने साथ बचपन तक, जवानी बस रवानी तक, सभी अनुभव भरे किस्से बस बुढ़ापे की कहानी तक,
जवानी में बस सहारे हैं बस जिंदगी भर के, मगर ये जिंदगी के आखिरी पल का सहारा है
, ये गंगा का किनारा है, ये गंगा का किनारा है’’।
डा. विश्वास ने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘कोई दीवाना कहता है,
कोई पागल समझता ह’ सहित अन्य कई कई कविताएं भी सुनाईं।
सुश्री कविता तिवारी ने मां शारदा की वंदना करते हुए अपनी ओजस्वी सुर में
‘‘धन द्रव्य सम्पदा तो नहीं मांग रही हूं, जो मांग रही हूं वो सही मांग रही हूं,
कविता की पंक्ति पंक्ति राष्ट्र जागरण बने, आशीष आप सब से यही मांग रही हूं।’’
उत्तराखण्ड की दिव्यता और पवित्रता को नमन करते हुए उन्होंने ‘धरा यहां धरती के सम्मुनत भाल जैसा है,
यहां की संस्कृति का रूप शुभटक साल जैसा है, कोई उपमा में सारे विश्व को कह दे शिवाला तो,
हमारा देश पावन आरती के थाल जैसा है।’’