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रजनीश प्रताप सिंह “तेज”
देहरादून :
महंगा इलाज फिर भी मौत
लंपी पशुओं में एक वायरस से होने वाली बिमारी है जिसमें उसके शरीर की त्वचा में गांठे बन जाती हैं.
डोईवाला के झड़ोंद क्षेत्र में आज सुबह लंपी बीमारी के चलते हुए एक गाय की मौत हो गई है.
शिमलास ग्रांट के पूर्व प्रधान उमेद बोरा ने जानकारी देते हुए बताया कि झड़ोंद गांव में रहने वाले हरिराम के पुत्र प्रदीप वर्मा की गाय पिछले लगभग एक हफ्ते से लंपी बीमारी से ग्रसित थी.
प्रदीप वर्मा द्वारा अपनी गाय का प्राइवेट डॉक्टर से इलाज भी करवाया जा रहा था जिसके लिए काफी महंगी दवाओं का भी इस्तेमाल किया गया लेकिन आज सुबह इस बिमारी से ग्रसित गाय ने दम तोड़ दिया है.
गाय-गंगा की बात
उमेद बोरा ने बताया कि इससे लगभग 4 दिन पूर्व नागल ज्वालापुर में रहने वाले साधुराम के पुत्र दिनेश कुमार की गाय ने भी लंपी बीमारी से दम तोड़ दिया था.
श्री बोरा ने कहा कि एक ओर तो हमारी सरकार गाय और गंगा की बात करती है लेकिन धरातल पर वास्तविकता कुछ और ही है.
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि मृत पशु की खाल निकालने का ठेका होता था लेकिन अब ऐसी सुविधा की कोई जानकारी नहीं है.
किसान पर इलाज और शव दबाने की दोहरी मार
लंपी बीमारी के इलाज में एक गरीब किसान को अपनी जेब से पैसा खर्च करना पड़ रहा है और यदि गाय की मृत्यु हो जाती है तो पशु के शव निस्तारण के लिए भी जेसीबी मशीन बुलवाकर गड्ढा कर कर दबाने में लगभग 1000 से ₹1500 का खर्चा आ रहा है.
श्री बोरा ने सरकार से मांग की है कि वह लंपी बीमारी से ग्रसित पशुओं के शव निस्तारण की उचित व्यवस्था करें ताकि किसान को राहत मिल पाए.