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SDM डिग्री कॉलेज डोईवाला में “रामकथा” पर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित

Ramkatha National Seminar Doiwala

देहरादून ( रजनीश प्रताप सिंह तेज ) : Doiwala के शहीद दुर्गामल्ल राजकीय महाविद्यालय में Ramkatha पर दो दिवसीय National Seminar का आयोजन किया गया

यह National Seminar “रामकथा एवं रामकथा के दृश्य प्रतिरूपों में निहित सामाजिक ऊर्जा”

“Social Energy Inherent in Ramkatha and its Visual Representations” विषय पर आयोजित किया गया

जिसमें वक्ता भौतिक और ऑनलाइन माध्यम से जुड़े इस दौरान रिसर्च पेपर भी प्रस्तुत किये गये

जिसके प्रथम दिवस वक्ताओं ने रामकथा के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला

Ramkatha National Seminar Doiwala

रामायण का सार्वभौमिक महत्व 

दून यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि

सदियों से राम कथा विभिन्न रूपों में हमारे सामने आती रही है।

उन्होंने बताया कि मलेशिया, इंडोनेशिया जैसे दुनिया भर के देशों में

राम कथा को उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

प्रोफेसर डंगवाल ने जोर देकर कहा कि हमारा अस्तित्व राम कथा से प्रकाशित है।

उन्होंने बताया कि राम कथा एक आदर्श पुत्र, आदर्श पत्नी, और आदर्श भाई को हमारे समक्ष प्रस्तुत करती है।

इसके अलावा, राम कथा यह भी सिखाती है कि एक शत्रु के लिए भी मोक्ष की कामना कैसे की जाती है।

प्रोफेसर डंगवाल ने राम राज्य की अवधारणा पर भी प्रकाश डाला,

जो आज भी सुशासन या गुड गवर्नेंस के मॉडल के तौर पर हमारे सामने रहता है।

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि प्रभु राम ने कोई चमत्कार नहीं किया,

बल्कि उन्होंने अपने आसपास के वानरों को शामिल किया,

यहां तक कि एक गिलहरी भी राम कथा का हिस्सा बन गई

रामायण की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्ता

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इंग्लिश विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर कृष्ण मोहन पांडे ने अपने मुख्य भाषण में

राम कथा के गहन महत्व और व्यापक स्रोतों पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि राम कथा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है और यह लोक साहित्य की श्वास है।

प्रोफेसर पांडे ने एक महत्वपूर्ण बिंदु उठाया कि राम कथा वाल्मीकि से भी पूर्व की है, जिसे नारद ऋषि के द्वारा कहा गया

Ramkatha National Seminar Doiwala

प्राणबिन्दु हैं राम

विधायक बृज भूषण गैरोला ने कहा कि राम हमारे प्राणबिन्दु हैं

रामकथा जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है

सदियों से रामकथा हमारे जीवन का अभिन्न अंग है

उत्तराखंड की ‘रम्माण’

पूर्ण अधिवेशन के गेस्ट स्पीकर एचएनबी गढ़वाल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ डी आर पुरोहित ने बताया कि

उत्तराखंड के विभिन्न गांव में रामायण के रूप में राम कथा प्रदर्शित की जाती है।

रामायण को स्थानीय गढ़वाली भाषा मे ‘रम्माण’ भी बोला जाता है

उत्तराखंड के चमोली जिले के सलूड़ गांव में प्रतिवर्ष वैशाख में रम्माण का आयो किया जाता है

यह उत्सव युनेस्को की विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित है।

सीता माता का भूमि में समा जाना

उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के ही पौड़ी जनपद में पौख विकासखंड के अंतर्गत

फलस्वाड़ी गांव में सीता माता को भूमि में समाये जाने की बात कही जाती है

यहां प्रत्येक वर्ष द्वादश कार्तिक महीने में जमीन में खड़े पत्थर पर एक लंबी चुटिया बनाई जाती है

जो माता सीता के जमीन में समय जाने का प्रतीक है।

 रामायण का महत्व और प्रदर्शन

प्रोफेसर पुरोहित ने कहा राम कथा हमारा जीवन है

इसे हम अपने जीवन से अलग नहीं कर सकते।

विभिन्न नृत्य शैलियों जैसे कथकली, ओडिशा और बंगाल का जात्रा रामायण को बखूबी प्रदर्शित करती है।

 रामायण का चित्रण और कला रूप

डॉ पुरोहित ने कहा कि बिहार की मधुबनी पेंटिंग, ओडिशा की पट्टचित्र और तमिलनाडु की तंजौर पेंटिंग

जैसी पारंपरिक कला रूपों में लंबे समय से रामायण के दृश्य चित्रित किए गए हैं।

ये जीवंत, विस्तृत कार्य न केवल क्षेत्रीय कला शैलियों को संरक्षित करते हैं

बल्कि दृश्य कहानी कहने के साधन के रूप में भी काम करते हैं,

जिससे महाकाव्य उन लोगों के लिए भी सुलभ हो जाता है जो पाठ्य संस्करण नहीं पढ़ या समझ सकते हैं

डॉ पुरोहित ने बताया कि रामायण के मूर्तिकला प्रतिनिधित्व पूरे भारत में मंदिरों में,

एलोरा की प्राचीन शैलकृत गुफाओं से लेकर दक्षिण भारतीय मंदिरों के अलंकृत गोपुरमों तक पाए जाते हैं।

ये त्रि-आयामी चित्रण पात्रों और घटनाओं को जीवंत बनाते हैं,

जिससे भक्तों और आगंतुकों को कहानी के साथ एक मूर्त, भौतिक तरीके से जुड़ने की अनुमति मिलती है।

Ramkatha National Seminar Doiwala

पहाड़ी और राजस्थानी लघु चित्रकला में अक्सर रामायण के दृश्य चित्रित किए जाते हैं।

आंध्र प्रदेश की “कलमकारी” पारंपरिक कला रूप रामायण के दृश्यों के साथ हाथ से पेंट या ब्लॉक-प्रिंटेड सूती वस्त्रों की विशेषता है।

आंध्र प्रदेश में थोलु बॉमलता और कर्नाटक में तोगलु गोम्बेयता रामायण का वर्णन करने के लिए जटिल चमड़े की कठपुतलियों का उपयोग करते हैं।

रामायण का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव

उन्होंने कहा कि इसके अलावा इंडोनेशिया की वायांग कुलित, छाया कठपुतली थियेटर अक्सर रामायण के एपिसोड का प्रदर्शन करता है।

खमेर कला (कंबोडिया) अंकोर वाट में रामायण के दृश्य चित्रित किए गए हैं।

रिसर्च पेपर किये प्रस्तुत

इस अवसर पर रिसर्च पेपर भी प्रस्तुत किये गये

रामायण से पूर्व है ‘रामकथा’ का अस्तित्व

शहीद दुर्गामल्ल डिग्री कॉलेज के डॉ. संजीव सिंह नेगी ने कहा कि रामायण से भी पूर्व में राम कथा लोकगीत और लोक कथा के रूप में प्रचलित थी,

जो समाज के विभिन्न हिस्सों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है।

भारत में 300 से अधिक रूपों में रामायण मिलती है।

इसके अलावा, पूरे विश्व भर में जैसे कंबोडिया, लाओस, तिब्बत और इंडोनेशिया में भी विभिन्न रूपों में राम कथा प्रस्तुत की जाती है।

ऋग्वेद के तैत्तिरीय उपनिषद में राम का अर्थ रमणीय पुत्र के रूप में बताया गया है।

वैदिक साहित्य में राम से अधिक सीता का जिक्र है,

जिसमें सीता को कृषि की अधिष्ठात्री बतलाया गया है और

हल के फल की अंतिम सीमा को सीता कहा गया है।

राम को नील वर्ण का, अर्थात घनश्याम बादलों के समान, बताया गया है।

वहीं, रावण को कृषि को उजाड़ने वाला बताया गया है।

इनके अलावा डॉ तनु,डॉ अंधृति शाह,डॉ वर्षा सिंह ने भी अपने रिसर्च पेपर प्रस्तुत किये

प्रोफेसर शारदा श्रीनिवासन द्वारा Ramayana Bronzes and Sculptures from the Chola to Vijayanagara Times विषय पर ऑनलाइन प्रेजेंटेशन दिया गया

सीएम ऑफिस समन्वयक हरीश कोठरी द्वारा भी संबोधन किया गया

Ramkatha National Seminar Doiwala

ये रहे प्रमुख रूप से उपस्थित

राजकीय महाविद्यालय डोईवाला के प्राचार्य डॉक्टर डीसी नैनवाल,दून यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल,डोईवाला विधायक बृजभूषण गैरोला,सिपेट के निदेशक अभिषेक राजवंश ,एचएनबी गढ़वाल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ डी आर पुरोहित,बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के एम पांडे, डॉ डी एन तिवारी,डॉ नीरज नौटियाल, प्रोफेसर राकेश चंद्र जोशी, कार्यक्रम संयोजक डॉ पल्लवी मिश्रा,डॉ राखी पंचोला, डॉ नवीन कुमार नैथानी ,डॉ संजीव सिंह नेगी, भाजपा नेता विक्रम सिंह नेगी,मनमोहन नौटियाल,मनीष नारंग प्रमुख रूप से उपस्थित रहे

 

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