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( अजीब पहेली ) देहरादून के इस “रिटायर्ड टीचर को जमीन निगल गयी या आसमान खा गया”

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-रजनीश सैनी 

देहरादून : उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के एक सेवानिवृत्त अध्यापक अचानक अपने गांव से यूं गायब हुये कि परिवार-रिश्ते-नातेदार तो छोडो पुलिस की भी नींद उडी हुई है।

इस शिक्षक को लेकर अब फिजाओं में तरह-तरह के किस्से तैर रहे हैं.या यूं कह लीजिये जितने मुँह उतनी बातें।क़िस्सागोही के सिवा अभी कुछ बाकी नही है।

‘लास्ट लोकेशन’,’कॉल डिटेल’,’सीसीटीवी फुटेज’ हुई बेमानी

मामला कुछ यूं है कि तीस अगस्त यानि जन्माष्टमी की शाम डोईवाला के जीवनवाला गांव में रहने वाले रिटायर्ड टीचर सुभाष चंद शर्मा अपने एक परिचित के घर गये।ये परिचित कोई और नही उनके घर से कुछ दूर रहने वाला एक पडोसी है।

यही उनकी लास्ट लोकेशन है।

क्यूंकि दिलचस्प बात ये है कि इस घर में आते तो सीसीटीवी फुटेज में दिख रहे हैं,लेकिन यहां से वापस बाहर जाते किसी ने नही देखा।यही वो जगह है जहां से उनका मोबाइल फोन स्विच ऑफ हो जाता है।

स्थानीय पुलिस ने इस पडोसी को पुलिस चौकी बुलाकर हर तरह से पूछताछ की लेकिन कुछ हासिल नही हो सका।यह पडोसी गांव में ही है और पुलिस को जांच में पूरा सहयोग कर रहा है।

पुलिस जांच का एक पहलू यह भी 

देहरादून के सीएनआई इंटर कॉलेज से डेढ़ साल पहले रिटायर हुये सुभाष चंद शर्मा अच्छी-खासी संपत्ति के मालिक हैं।उनकी जिंदगी की खास बात यह है कि 62 वर्षीय इस टीचर ने शादी नही की।

अब यूपी के कईं थानों से अपनी नौकरी की शुरुआत करने वाले स्थानीय कोतवाल कईं एंगल से इस केस की पेचीदगी सुलझाने में रात-दिन एक किये हुये हैं।

जिसका एक एंगल यह भी है कि वह अपनी मर्जी से बिना बताये घर से चले गये हैं और कुछ दिनों बाद वापस घर आ सकते हैं।

लेकिन घरवालों की चिंता कुछ और है।उनका कहना है कि आमतौर पर पोलिश किये हुये शूज और टिप-टॉप रहने वाले सुभाष चंद शर्मा गायब होने से पहले घर के साधारण से लोअर,बाहर निकली हुई शर्ट और चप्पल में आखिर क्यूं जायेंगें ?

इस टीचर की गुमशुदगी का केस भी थाने में दर्ज है।पुलिस की जांच टीम जी-जान से इस केस में जुटी हुई है लेकिन अभी तक उसका पिटारा खाली ही है।

आज क्षेत्रीय राजनैतिक दल उत्तराखंड क्रांति दल के नेता शिव प्रसाद सेमवाल,कईं कार्यकर्त्ता, शिक्षक के परिवार और गांववाले कोतवाली में पहुंचे जहां पुलिस ने उन्हें तीन दिन के भीतर शिक्षक को बरामद करने का भरोसा दिलाया है।

अब परिवार और गांववालों के पास इस ‘भरोसे’ पर ‘भरोसा’ करने के सिवा कुछ नही है।क्यूंकि कहते हैं,”पूरी दुनिया भरोसे पर चल रही है।”

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