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इंदिरा गांधी की तानाशाही के 21 माह भारतीय इतिहास का काला समय : कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 25 जून को आपातकाल लगाए जाने के विरोध में भाजपा द्वारा इस दिन को काले दिवस के तौर पर मनाया गया.
> 47 साल पहले आज के दिन लगा था आपातकाल
> 25 जून 1975, भारतीय लोकतंत्र का काला दिवस
> इमरजेंसी के दौरान प्रेस पर लगायी गयी सेंसरशिप
> विपक्ष के नेताओं को जेल में ठूंस हुआ उत्पीड़न
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रजनीश प्रताप सिंह ‘तेज’

देहरादून : गढ़ी कैंट स्थित एक शादीघर में आयोजित ऐसे ही एक कार्यक्रम में आज कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी भी उपस्थित रहे। इस दौरान आपातकाल की दुखद स्मृतियों को याद किया गया.

साथ ही आपातकाल के दौरान जेल गए तारा चन्द्र गुप्ता तथा भूमिगत जीवन जीने को मजबूर हुए रोशन लाल अग्रवाल को शॉल ओढ़ा कर सम्मानित किया गया.

उपस्थित जनसमूह को आपातकाल के अत्याचारों के बारे में बताते हुए कैबिनेट मंत्री ने कहा कि 25 जून की रात से ही देश में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया था. जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नाडीस आदि बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। जेलों में जगह नहीं बची थी.

आपातकाल के दौरान प्रेस की आजादी पर भी हमला हुआ राजधानी दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित अखबारों के ऑफिसेज की बिजली काट दी गई थी. उस दौरान कई अखबारों ने मुखर होकर आपातकाल का विरोध किया था.

47 साल पहले आज के ही दिन देश के लोगों ने रेडियो पर एक ऐलान सुना और मुल्क में खबर फैल गई कि सारे भारत में अब आपातकाल की घोषणा कर दी गई है.

आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। अभिव्यक्ति का अधिकार ही नहीं, लोगों के पास जीवन का अधिकार भी नहीं रह गया था। आपातकाल के बाद प्रशासन और पुलिस के द्वारा भारी उत्पीड़न की कहानियां सामने आई थीं.

प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा दी गई थी. हर अखबार में सेंसर अधिकारी बैठा दिया गया, उसकी अनुमति के बाद ही कोई समाचार छप सकता था। सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो सकती थी. उन्होंने कहा कि दमन की इस राजनीति की जगह नरेन्द्र मोदी की सरकार ने प्रगति और विकास की राजनीति को आगे बढ़ाया है. पिछले 8 सालों में भारत देश ही छवि पूरी दुनिया में विश्वगुरू के तौर पर स्थापित हो रही है.

मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित देवेन्द्र भसीन ने कहा कि 25 जून 1975, भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में इस दिन को देश के सबसे दुर्भाग्यपूर्ण दिन यानि काले दिन की संज्ञा दी जाती है.

1975 में 25 और 26 जून की रात ही तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इशारों पर संविधान की धारा 352 का प्रयोग कर देश में आपातकाल लागू किया गया था.

इसके साथ ही देश भर में गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया था। इसकी जड़ में 1971 में हुए लोकसभा चुनाव था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंदी राजनारायण को पराजित किया था.

लेकिन चुनाव परिणाम आने के 4 साल बाद राज नारायण सिंह ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी.

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर 6 साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया और राज नारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया.

इंदिरा गांधी ने आदालत के इस निर्णय को मानने से इंकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की। 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा परंतु इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी.

स्वयं को चौतरफा घिरा पाकर उन्होंने 25 जून को देश को आपातकाल की आग में झोंक दिया.
आपातकाल के बाद प्रशासन और पुलिस के द्वारा भारी उत्पीड़न की कहानियां सामने आई थीं. 
इस अवसर पर मण्डल अध्यक्ष पूनम नौटियाल, विष्णु गुप्ता, ज्योति कोटिया, सुरेंद्र राणा, राजेन्द्र कौर सोंधी, मेघा भट्ट, प्रेम पंवार, पार्षद संजय नौटियाल, योगेश, निर्मला भट्ट, प्रभा साह, शमशेर सिंह बिष्ट, गिरीश उनियाल आदि उपस्थित रहे।

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