( हेल्थ ) पहाड़ों पर रहने वाले व्यक्तियों में बढ़ रही निद्रा रोग की समस्याएं

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( PRIYANKA SAINI )
देहरादून: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश के निद्रा रोग विभाग
के अनुसार लोगों में भिन्न भिन्न कारणों से निद्रा रोग की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं।
विशेषज्ञ चिकित्सकों के अनुसार इन रोगों से ग्रसित मरीज यदि समय पर उपचार शुरू नहीं कराते हैं
तो उसके स्वास्थ्य पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है
और समय के साथ साथ व्यक्ति अन्य दूसरी घातक बीमारियों की गिरफ्त में आ जाता है,
जिससे मरीज के जीवन को खतरा पैदा हो सकता है।
नींद के विकार महत्वपूर्ण सामाजिक और व्यक्तिगत बोझ का कारण बनते हैं
और एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभरते है.हाल के दिनों में अध्ययन के माध्यम से यह देखा गया है
कि पहाड़ ( समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई ) पर रहने वाले लोगों की नींद की गुणवत्ता सामान्य ऊंचाई पर रहने वाले लोगों के अपेक्षा काफी खराब है।
पहाड़ों पर रहने वाले लोगों की नींद की गुणवत्ता खराब होने के कई कारण हैं।
जैसे रक्त में ऑक्सीजन की कमी के कारण श्वांस में अनियमितता,
सांस की गति बढ़ जाना एवं सांस की गति का कम हो जाना, सोने के दौरान पैरों में बेचैनी, बार -बार नींद से दिमाग का जग जाना
नींद संबंधी विचार का बार – बार आना आदि।
बताया गया है कि विश्वभर में लगभग 14 करोड़ लोग पहाड़ों ( मध्यम से अधिक ऊंचाई ) पर निवास करते हैं और करीबन 4 करोड़ लोग पहाड़ों की यात्रा करते हैं।
भारत में भी लगभग 5 से 6 करोड़ लोग पहाड़ों (मध्यम से अधिक ऊंचाई ) वाले स्थानों मसूरी, नई टिहरी, पौड़ी, लैंसडाउन, उत्तरकाशी, नैनीताल आदि स्थानों पर रहते हैं।
उत्तराखंड में किए गए शोध में पाया गया है कि समुद्रतल से 2000 मीटर की ऊंचाई पर स्थायीतौर पर निवासरत रहने वाले हर पांच में से उक व्यक्ति को निद्रा संबंधी परेशानी होती है।
शोध में मुख्यतः नींद की गुणवत्ता में कमी की समस्या देखी गई है।
नींद की गुणवत्ता में खराबी –
यहां के लोगों में यह देखा गया है कि नींद की पूरी मात्रा लेने के बावजूद कई लोगों को नींद न तो तरोताजगी देती है और न ही पूरी तरह से थकावट दूर होती है। नींद में गुणवत्ता में खराबी के दो प्रमुख कारण –
1 – ऊंचाई में रहने के कारण वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा कम मिलने से रक्त में ऑक्सीजन कम हो जाता है, जिसको सामान्य करने के लिए श्वांस की गति में अनियमितता रहती है, सांस रुक जाती है और उससे हमारा दिमाग बार- बार जग जाता है।
२- रेस्ट लेस लेग सिंड्रोम – पहाड़ों पर रहने वाले लोगों में १० में से १ व्यक्ति में यह बीमारी पाई जाती है। इस बीमारी में मरीज के पैरों में बड़ी बेचैनी होती है। यह बेचैनी पिंण्डलीयो ( मांस वाले भाग ) में होती है,
खास कर जब आप बिस्तर पर सोने या आराम करने जाते है।
जिससे आराम पाने के लिए मरीज पैरों या पंजों को बार – बार हिलाता रहता है,
जिससे उसकी नींद गहरी नहीं हो पाती और नींद बार- बार टूट जाती है।
ख़राब नींद की गुणवत्ता के दुष्प्रभाव –
लगातार नींद की गुणवत्ता खराब रहने से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं,
जैसे – १- हाईपरटेंशन (हाई बी. पी.)
२-डिप्रेशन ( अवसाद )
३- डाइबिटीज मेलाइटस (शुगर )
४- नशे की लत
५- कोरेनरी आर्टरी डिजीज ( ह्रदय के धमनियों सम्बंधित बीमारी )
यह सभी बीमारियां हमारे स्वास्थ्य तंत्र पर अतिरिकत भार बन जाती हैं और लोगों के जीवन को भी नकात्मक रूप से प्रभावित करती हैं।
नींद की गुणवत्ता में निम्न तरह से हो सकता है सुधार-
१-नींद व नींद संबंधी विकारों के बारे जनजागरुकता फैला कर
२- निद्रा चक्र को ठीक रख कर
३- शुरुआती लक्षण आने पर निद्रा रोग विशेषज्ञ की सलाह लेकर
४- निद्रा को अनियमित करने वाले कारकों से दूर रहकर।